रस हिंदी साहित्य के सबसे अहम पहलुओं में से एक है, जिसके बिना हिंदी साहित्य अधूरा माना जाता है। विभिन्न विद्वानों ने रस को विभिन्न तरीकों से परिभाषित किया है, इसलिए आज हम इस लेख में हम आसान शब्दों में समझेंगे कि Ras Kise Kahate Hai, रस की परिभाषा क्या है और रस कितने प्रकार के होते हैं।

रस को समझाने से पहले मैं आपको बताना चाहूँगा कि भारतीय परीक्षाओं में रस पर प्रश्न पूछे जाते हैं, इसलिए यदि आप किसी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं, तो यह आपके लिए बहुत मददगार साबित हो सकता है। यदि आपकी स्कूली शिक्षा जारी है, तो भी आपको रस की परिभाषा को समझना चाहिए।

तो चलिए रस (Ras in Hindi) को विस्तारपूर्वक समझते है…….. 

रस किसे कहते है?

रस की परिभाषा (Ras Ki Paribhasha) : अगर किसी भी काव्य को पढ़कर आपके अंदर एक आनंद की अनुभूति होती है तो उसे ही रस कहा जाता है। इस तरह हम कह सकते है कि काव्य का आनंद ही रस है। यह मनुष्यों के भाव को दर्शाते है, जैसे जब हम दुखी होते है तो रोते है या उदास होते है ठीक इसी प्रकार जब खुश होते है तो अंदर से खुशी का अहसास होता है। इन सभी भावों को ही Ras कहा जाता है। 

भारत के अलग – अलग विद्वानों एंव आचार्यो ने अपने – अपने तरीके से इसे परिभाषित किया है जैसे आचार्य भरतमुनि ने अपने “नाट्यशास्त्र” में रस की परिभाषा देते हुये कहा है कि विभाव, अनुभाव, और संचारीभाव के संयोग से Ras की निष्पत्ति हुई है। 

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RAS Kitne Prakar Ke Hote Hain?

रस को हिंदी में भाव के नाम से जाना जाता है और आचार्यो एंव विद्वानों के अनुसार Ras के चार अवयव होते है यानि कि इसे चार वर्गों में वर्गीकृत किया गया है:

RAS Kitne Prakar Ke Hote Hain?

#1 स्थायी भाव क्या होते है?

मनुष्य के ह्रदय में हमेशा स्थिर रहने वाले जो भी मनोविकार उठते है उन्हें स्थायी भाव कहा जाता है। जिस तरह से एक गिटार में स्वर होता है लेकिन वह स्थिर रहता है और फिर हमारी उंगलिया पड़ते ही मधुर धुन गूंजने लगती है। ठीक इसी प्रकार हमारे स्थायीभाव स्थिर रहती है लेकिन किसी विशेष परिस्थिति में जाग्रत होकर Ras की अनुभूति कराते है। 

रस और उनके स्थायीभाव

कुछ भारतीयों आचार्यो ने सभी रस के लिए स्थायीभावों विवरण दिया है जो इस प्रकार दिया है:

रस  स्थायीभाव
श्रंगार रस  रति 
वीर रस  उत्साह 
करुण रस  शोक
रौद्र रस क्रोध 
हास्य रस खुशी
वीभत्स रस  घृणा
भयानक रस  भय या डर
अद्भुत रस  आश्चर्य
शांत रस निर्वेद

इन सभी रसो के अलावा विद्वानों ने दो और रसो का उल्लेख किया है : 

रस

  1. वात्सल्य रस : संतान विषयक रति (वत्सलता)
  2. भक्ति रस : ईश्वर विषयक रति (भक्तिभाव)

#2 विभाव क्या होते है?

Ras की उत्त्पति के मूल कारण विभाव है, जो तत्व किसी व्यक्ति के ह्रदय में भावों को जागृत या उद्बुध्द करते है उन्हें विभाव कहते है। विभाव को दो वर्गों में वर्गीकृत किया गया है:

(क) आलम्बन 

(ख) उद्दीपन 

(क) आलम्बन विभाव

आलम्बन विभाव के भाव के दो वर्गों में विभाजित किया है जिसका पहला वह होता हो जिसके प्रति भाव उत्पन्न होता है और दूसरा वह जिसके ह्रदय में भाव उत्पन्न होता है। इसमें पहले को आलम्बन और दुसरे को आश्रय कहा जाता है। 

जैसे – वाटिका में सीता को देखकर राम के ह्रदय में भाव उत्पन्न हुआ। जहां सीता आलम्बन है और राम जिनके ह्रदय में Ras उत्पन्न हुआ वह आश्रय है।

(ख) उद्दीपन विभाव

जो भावो को उदीप्त कर आनंद प्रदान कर योग्य बनाते है उन्हें उद्दीपन विभाव कहा जाता है। जैसे श्रंगार रस में नायक और नायिका के वर्णन में इनके प्रेमभाव को सुन्दर उपवन, हरी घास, पक्षियों की क्रीड़ाएं एंव पुष्प आदि उदीप्त करते है। 

#3 अनुभाव 

अनुभाव का साधारण सा अर्थ है अनुभव करने वाला अथवा किसी वाक्य में स्थायीभाव के पीछे एक विशेष भाव को महसूस करे उसे ही अनुभाव कहा जाता है। अनुभाव ही भावों की अभिव्यक्ति करते है। 

अनुभाव चार प्रकार के होते है जो इस प्रकार है:

अनुभाव

#4 संचारीभाव या व्यभिचारिभाव

जो भाव रस के लिए विभिन्न स्थायीभावो की ओर संचरण करते है, वह संचारीभाव कहलाते है। क्योंकि ये ऐसे भाव है जो कभी भी स्थिर नहीं नहीं है ये कभी उत्पन्न होते है, कभी तिरोहित होते है, कभी डूबते तो कभी उतराते रहते है इसलिए इन्हे स्थायीभाव कहा जाता है। 

विद्वानों के अनुसार संचारीभावो की संख्या तेतीस मणी जाती है जो इस प्रकार है: 

निर्वेद  आवेग  दैन्य  श्रम  मद 
जड़ता  उग्रता  मोह  बिवोध  स्वपन 
अपस्मार  गर्व  मरण  अलसता  अमर्ष 
निद्रा  अवहिल्था  औत्सुक्य  उन्माद  शंका 
स्मृति  मति  व्याधि  संत्रास  लज्जा 
हर्ष  असूया  विषाद  धृति  चपलता 
ग्लानि चिंता  वितर्क   —————–   —————–

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रस का काव्य में स्थान एंव महत्त्व

रस का काव्य में बहुत बड़ा योगदान है, बिना Ras के काव्य को व्यक्त करना व्यर्थ है क्योंकि रस जीवन का सार है। हमारे जीवन में जितने भी क्रिया कलाप है उन सभी में रस निहित है। विद्वानों का मानना है कि रस ही काव्य के प्राण है जिस तरह बिना प्राण के शरीर का कोई अस्तित्व नहीं है ठीक इसी प्रकार बिना रस के काव्य का कोई महत्त्व नहीं है। जब काव्य में रस निहित होता है तो इसकी स्थिति से ह्रदय मुक्त हो जाता है। 

हमें उम्मीद है कि आपको इस लेख से Ras Kise Kahate Hai, Ras Ki Paribhasha और RAS Kitne Prakar Ke Hote Hain है समझने में मदद मिली होगी, लेकिन अगर आपका इससे संबधित कोई सबाल रहता है तो आप हमें कमेंट कर सकते है।