अगर आप समझना चाहते है कि भारत में म्यूचुअल फंड की संरचना क्या है और म्यूच्यूअल का गठन कैसे होता है, तो आप विल्कुल सही जगह आये है। म्युचुअल फंड भारत में एक लोकप्रिय निवेश विकल्प के रूप में जाना जाता है, जो निवेशकों को अपने पोर्टफोलियो में Diversification)लाने और कम जोखिम के साथ स्टॉक मार्केट में निवेश करने का अवसर प्रदान करता है।
इस पोस्ट में, हम समझेंगे कि हमारे भारत में म्युचुअल फंड का गठन कैसे होता है और इसकी सरंचना क्या है। भारत में विभिन्न प्रकार के म्युचुअल फंड उपलब्ध हैं, जिन्हे प्रोफेशनल फंड मैनेजर्स द्वारा मैनेज किया जाता है।
हमें उम्मीद है कि यह पोस्ट आपको भारत में म्यूचुअल फंड की संरचना का एक व्यापक समझ प्रदान करेगी और ये भी समझने में मदद मिलेगी कि ये निवेश के लिए सुरक्षित है या नहीं। तो चलिए समझते है म्यूचुअल फंड की संरचना एंव गठन कैसे होता है?
म्यूचुअल फंड की संरचना क्या है?
भारत में म्यूचुअल फंड की संरचना को तीन भागो में वर्गीकृत किया गया है जिसमें कुछ अन्य महत्वपूर्ण पहलु भी शामिल है म्युचुअल फंड संरचना में मुख्य रूप से फंड स्पॉन्सर, ट्रस्ट और ट्रस्टी और एसेट मैनेजमेंट कंपनियां अहम भूमिका निभाती है।
किसी भी म्यूच्यूअल फंड स्कीम को न सिर्फ बैंक या एसेट मैनेजमेंट कंपनियां तैयार करती है बल्कि इसमें अन्य पार्टियों की भी अहम भूमिका होती होती है। इसके अलावा, सेबी म्यूचुअल फंड विनियम, 1996 के तहत म्यूचुअल फंड की संरचना अस्तित्व में आयी थी। तभी से म्यूच्यूअल फंड में होने वाले प्रत्येक ट्रांसेक्शन पर सेबी की नजर रहती है और सेबी की ही देख रेख में म्यूच्यूअल फंड काम करते है जिससे म्यूच्यूअल फंड में किसी भी तरह की कोई भी अनैतिक कार्य न हो।
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म्यूचुअल फंड की संरचना
म्यूचुअल फंड एक ट्रस्ट के रूप में गठित किया जाता है, जिसमें विभिन्न पार्टियां शामिल होती है जो इस प्रकार है:
टियर-1: प्रायोजक या फंड स्पॉन्सर
जिस तरह किसी कंपनी में प्रमोटर मुख्य व्यक्ति होता है, उसी तरह म्यूचुअल फंड में प्रायोजक या SPONSOR होते हैं। म्यूच्यूअल फंड निर्माण में इनकी अहम् भूमिका होती है। SPONSOR का मुख्य काम सेबी से अनुमोदन करके म्यूच्यूअल फंड की स्थापना के लिए ट्रस्ट का गठन करना होता है। स्पोंसर सामान्यतः फाइनेंसियल संस्थाएं या बैंक होते हैं।
टियर -2: ट्रस्ट और ट्रस्टी
ट्रस्टी का काम होता है कि वह सेबी द्वारा बनाये गये नियमों का पालन करे और निवेशकों के हितों की पूरी तरह से रक्षा करने के लिए म्यूच्यूअल फंड की सम्पतियों के रखरखाव के लिए उतरदायी होता है। ट्रस्टी यानि ASSET MANAGEMENT COMPANY के योजनाओं को अनुमति देते है और ट्रस्टी एएमसी द्वारा किये गये सभी तरह के खरीदारी और विकवाली को भी सत्यापित करता है और साथ ही इसकी रिपोर्ट सेबी को देता है। ट्रस्ट एक या उससे अधिक प्रायोजकों द्वारा स्थापित किया जाता है।
टियर -3: एसेट मैनेजमेंट कंपनियां (एएमसी)
AMC यानि ASSET MANAGEMENT COMPANY एक तरह की कॉर्पोरेट बॉडी होती है जिसका सबसे अहम काम स्टॉक मार्केट में निवेशकों की पूंजी को बेहतर तरीके से निवेश करना होता है, जिससे निवेशकों को अच्छा प्रॉफिट मिल सके। फंड मैनेजर निवेश उद्देश्य के अनुसार शेयर्स को खरीदता और बेचता है। एक फंड मैनेजर एक पंजीकृत निवेश सलाहकार होता है जिसे एसेट मैनेजमेंट कंपनियों द्वारा नौकरी पर रखा जाता है।
म्युचुअल फंड की संरचना में अन्य भागीदार
म्यूच्यूअल फंड की सरंचना में कुछ अन्य भागीदार भी शामिल है जिनका भी म्यूच्यूअल फंड की सरंचना में काफी योगदान है।
संरक्षक(CUSTODIAN)
कस्टोडियन का काम AMC द्वारा ख़रीदे जाने वाले हर तरह के सिक्योरिटीज को अपने कब्जे में रखना होता है। और यह सुनिश्चित करता है कि सभी सिक्योरिटीज उसकी निगरानी में सुरक्षित हैं इसे डिपोजिटरी भी कहा जाता है।
रजिस्ट्रार और ट्रांसफर एजेंट (RTA)
रजिस्ट्रार और ट्रांसफर एजेंट (आरटीए) निवेशकों और फंड मैनेजर के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में काम करते हैं। फंड मैनेजर के लिए, आरटीए निवेशकों के विवरण के बारे में जानकारी को अपडेट रखते हैं। निवेशकों को, आरटीए फंड के विभिन्न लाभ प्रदान करते है।
ऑडिटर
ऑडिटर विभिन्न योजनाओं की ऑडिटिंग और वार्षिक रिपोर्टों की जांच करने के लिए जिम्मेदार होते है। ऑडिटर स्वतंत्र रूप से स्पॉन्सर, ट्रस्टी एंव एएमसी के फाइनेंसियल को ऑडिट करते है। इसके साथ ऑडिटर ये भी सुनिश्चित करते है कि पैसा जिस उद्देश्य से लिया गया है उसी काम के लिए इस्तेमाल किया जाए।
ऑडिटर ये भी प्रमाणित करते हैं कि किसी भी फाइनेंसियल बुक में धोखाधड़ी का कोई सबूत नहीं है। इसलिए, ऑडिटर पारदर्शिता और अखंडता को बरकरार रखने में मदद करते हैं। इसके अलावा, एसेट मैनेजमेंट कंपनियां (एएमसी) स्वतंत्र रूप से नियमों को ध्यान में रखते हुए एक ऑडिटर नियुक्त कर सकते हैं।
ब्रोकर
ब्रोकर सेबी द्वारा अधिकृत व्यक्ति होते हैं जो निवेशकों को एक प्लेटफार्म प्रदान करते है जिनके माध्यम से निवेशक म्यूच्यूअल फंड, स्टॉक आदि में निवेश कर सकते है। ब्रोकर निवेशक और स्टॉक एक्सचेंज के बीच कड़ी की तरह काम करता है। भारत में ऐसे कई ब्रोकर हैं जो विभिन्न म्यूच्यूअल फंड स्कीम की रिसर्च रिपोर्ट जारी करते हैं जिसका उपयोग एएमसी मार्केट चाल को समझने के लिए भी करते है।
Intermediaries
आजकल विभिन्न वेबसाइट एंव मोबाइल ऐप है जिनके माध्यम से म्यूचुअल फंड खरीदे और बेचे जा सकते हैं। ये वेबसाइट और मोबाइल ऐप Intermediaries की तरह काम करते है। इनके अलावा भी व्यक्तिगत एजेंट, डिस्ट्रीब्यूटर कंपनियां, ब्रोकर, बैंक, डाकघर आदि भी Intermediaries की तरह काम कर सकते हैं।
Intermediaries निवेशक और म्यूचुअल फंड हाउस के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी की तरह काम करते हैं। क्योंकि ये निवेशकों को अपनी रिसर्च के आधार पर विभिन्न म्युचुअल फंड स्कीम में पैसा लगाने की सलाह देते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि खरीद और लेनदेन उनके माध्यम से हो। इसके बदले म्युचुअल फंड हाउस Intermediaries को कमीशन देते है।
निष्कर्ष
ये सभी प्रतिभागी म्यूचुअल फंड के गठन की प्रक्रिया में एक अहम भूमिका निभाते हैं। प्रत्येक प्रतिभागी की एक स्वतंत्र भूमिका और जिम्मेदारी है। साथ ही, इनकी कार्यक्षमता भी एक दूसरे से जुड़ी हुई है। इनके अलावा ये सभी अपना काम अच्छे से करे, इसका ख्याल सेबी द्वारा किया जाता है क्योंकि सेबी ही समस्त फाइनेंसियल मार्किट पर नजर रखता है।
अभी तक आपको समझ में आ गया होगा कि म्यूच्यूअल का गठन कैसे होता है और म्यूचुअल फंड की संरचना क्या है? लेकिन फिर भी अगर आपका कोई सवाल रहता है तो आप कमेंट कर सकते है।
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