5 नैतिकता के साथ कहानियां

Written by Wiki Bharat Team

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नमस्ते दोस्तों! आपका Stories with Morals in Hindi कहानियों के रोमांचक सफर में स्वागत है। आपने कभी न कभी अपने दादी-नानी की कहानियों को सुना होगा, जो हमें न सिर्फ हंसाती हैं, बल्कि हमें जीवन के विभिन्न पहलुओं के बारे में सिखाती भी हैं?

इसलिए इस ब्लॉग में हम आपको ऐसी ही बेहतरीन कहानियाँ सुनाएंगे जिनमें हमें जीवन के विभिन्न सबक सीखने को मिलेंगे। यह कहानियाँ हमारे जीवन के महत्वपूर्ण मुद्दों पर रोशनी डालेंगी और हमें एक बेहतर इंसान बनने का मार्ग दिखाएंगी।

तो, तैयार रहिए हमारे साथ इस सफर पर, जहाँ हम सुनेंगे और सीखेंगे कहानियों के माध्यम से। बच्चों के साथ-साथ यह ब्लॉग बड़ों के लिए भी है, क्योंकि हर कोई कुछ नया सीख सकता है।

तो, आइए Stories with Morals in Hindi के सफर की शुरुआत करते हैं और जानते हैं कैसे कहानियाँ हमें सिख और मनोरंजन का एक साथ आनंद देती हैं।

Best Stories with Morals in Hindi #1

Stories with Morals in Hindi – एक समय एक नगर में धनवान सेठ र‍हता था। उसके परिवार में उसका पुत्र, उसकी पुत्री एवं उसकी पत्‍नि थी। पुत्री का विवाह हो चुका था और वह कुछ दिनों के लिए मायके आई हुई थी जबकि उसका पुत्र बहुत ही नालायक हो गया था। 

वह अपनी मित्र मण्‍डली के साथ पिता के धन का दुरूपयोग करते हुए ऐश-मौज करता र‍हता और उसके पिता को ये बात बहुत दु:खी करती थी। इसलिए एक दिन उन्‍होंने अपने पुत्र को सुधारने के लिए एक तरकीब निकाली और उसे अपने पास बुलाकर कहा-

मैं लम्‍बे समय से देख रहा हूँ कि तुम अपना सारा समय अपने फालतु के मित्रों के साथ व्‍यर्थ गंवा रहे हो और पूरी तरह से नालायक हो चुके हो। मुझे  तुम्‍हारे सुधरने की कोई उम्‍मीद भी नजर नहीं आती। 

इसलिए यदि तुम आज शाम तक कुछ कमा कर नहीं लाए, तो लौटकर घर आने की जरूरत नहीं है, न ही मेरी धन-सम्‍पत्ति में तुम्‍हारा कोई अधिकार होगा क्‍योंकि मैं अपनी सारी धन-सम्‍पत्ति गरीबों में दान करके स्‍वयं तुम्‍हारी माँ के साथ तीर्थ यात्रा पर चला जाउंगा।

पिता की इतनी कड़ी बात सुनकर पुत्र बडा चिंतित हुआ एवं यहाँ-वहाँ घूमता रहा। यह देख उसकी माँ ने उसकी चिंता का कारण पूछा तो पुत्र ने अपनी माँ को पिता की कही गई बात बता दी।

पुत्र की चिंता से दु:खी होकर उसकी माँ ने उसे कुछ रूपये दे दिये। पुत्र रूपये लेकर अपने पिता के पास गया एवं पिता को रूपये देकर कहा-

ये रूपये मै कमा कर लाया हुँ।

पिता ने वे रूपए फिर से उसे देते हुए कहा-

जाकर इन रूपयों को उस कुएं मे फेंक दो।

पुत्र ने अपने पिता की बात मानते हुए उनके सामने ही रूपये कुऐं में फेंक दिये, जिससे सेठ को अंदाजा हो गया कि रूपए उसके पुत्र ने कमाए नहीं थे बल्कि कहीं से लाए थे। सेठ को जब ये बात पता चली कि रूपये उसकी माँ ने दिये थे, तो उसने उसे कुछ दिनों के लिए उसके पीहर भेज दिया और अगले ही दिन अपने पुत्र को फिर बुलाया और कहा-

एक ही दिन कमाने से जिन्‍दगी नहीं चलती। इसलिए आज साम तक कुछ और रूपए कमा कर लाओ।

पुत्र फिर से बडा चिंतित हुआ तभी उसको अपनी बहन की याद आई। वो अपनी बहन के पास गया एवं पिता द्वारा कही गई बात बताई। इस बार उसकी बहन ने उसकी मदद करते हुए उसे कुछ रूपये दे दिये, जिसे लेकर वह फिर से अपने पिता के पास गया और पिता ने फिर से उसे उन पैसों को कुएं में फेंकने के लिए कहा जिसे पुत्र ने बिना किसी हिचकिचाहट के फिर से कुऐं में फेंक दिया।

लेकिन इस बार सेठ को फिर से पता चल गया कि रूपये उसकी बेटी ने दिये थे। सो सेठ ने उसे भी उसके ससुराल भेज दिया और अगले ही दिन अपने पुत्र को बुलाकर फिर से पैसा कमाकर लाने के लिए कहा। लेकिन इस बार पुत्र कुछ अधिक ही चिन्तित था क्‍योंकि आज उसकी मदद करने के लिए माँ और बहन दोनों नहीं थे। उसी समय उसको अपने मित्र दिखाई दिये। सेठ के पुत्र ने अपने मित्रो से पिता द्वारा कही गई सारी बात बताते हुए कहा कि-

आज तुम लोग मेरी मदद कर दो, अन्‍यथा पिताजी मुझे घर से निकाल देंगे।

लेकिन उसके सभी मित्रों ने अलग-अलग तरह के बहाने बनाकर उसकी सहायता करने से मना कर दिया। पुत्र बडा परेशान हुआ क्‍योंकि शाम होने ही वाली थी। अचानक उसकी नजर एक दुकान पर पड़ी जिसके बाहर बहुत सारी धान की बोरियाँ पड़ी हुई थीं और ऐसा लग रहा था कि वह दुकानदार किसी हमाल की तलाश कर रहा था जो उन धान की बोरियों को गोदाम में रख दे। वह सेठ पुत्र उस दुकानदार के पास पहुंचा और कहा-

सेठ जी… कोई काम हो तो बताऐं।

दुकानदार ने धान की बोरियों की तरफ ईशारा करते हुए कहा-

इन सभी धान की बोरियों को गोदाम में रख दो। सभी का पांच रूपया दे दूंगा।

सेठ पुत्र राजी हो गया और धान की सभी बोरियों को गोदाम में रख दिया, जिसके बदले में सेठ ने उसे पांच रूपया दे दिया। जिन्‍दगी में पहली बार मेहनत का काम करने की वजह से सेठ पुत्र काफी थक गया था। पसीने से तर-बतर हुआ वह अपने घर पहुँचा और पिता के हाथ में रूपए देने लगा। पिता ने रूपए लिए बिना ही कह दिया कि-

ये रूपये ले जाकर उसी कुए मे फेंक आओ।

लेकिन इस बार पुत्र ने कहा कि-

मैं ये रूपये नहीं फेकुंगा क्‍योंकि ये रूपए मैंने बड़ी मेहनत से धान की ढेर सारी बोरियाें को गोदाम में रखकर कमाए हैं। ये मेरी मेहनत की कमाई है। मैं इन्‍हें हरगिज कुऐं में नहीं फेंकूंगा।

पुत्र का ये जवाब सुनकर पिता को विश्‍वास हो गया कि आज उसका पुत्र सचमुच रूपए कमाकर लाया है न कि किसी से मांग कर। साथ ही पुत्र को भी उन मित्रों की सच्‍चाई का पता चल गया जो केवल उसके धन पर ऐश-मौज करने के लिए ही उसके साथ मित्रता किए हुए थे। उस दिन के बाद उसने अपने सभी मित्रों से ऐसी स्‍वार्थ वाली मित्रता समाप्‍त कर ली और पिता के व्‍यवसाय में हाथ बंटाने लगा।

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#2 विश्‍व विजेता सिकंदर की महत्‍वकांक्षा

Stories with Morals in Hindi : सिकंदर एक बहुत ही महत्वाकांक्षी शासक था। इसी वजह से वह पूरी दुनिया पर राज करना चाहता था। उसकी इस महत्वाकांक्षा ने सिकंदर को भारत पर आक्रमन करने के लिए प्रेरित किया और अपनी महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए वह भारत पर विजय हासिल करने निकल पड़ा।

जब सिकंदर भारत देश के पास पहुँँचा तो रास्‍ते में एक जंगल आया। सिकंदर कि सेना ने उस जंगल में प्रवेश किया और आराम करने लगी। लेकिन सिकंदर शांति की चाहत में और गहरे जंगल में जा पहुचा तभी उसने देखा कि एक साधु पेड़ के नीचे लेटा आराम कर रहा है।

सिकंदर साधु के पास जाकर खड़ा हो गया और साधु से बोला, “महाराज …आप बहुत ज्ञानी साधु मालुम पड़ते हैं। कृपया मु‍झे कुछ  मार्गदर्शित कीजिए।”

साधु ने सिकंदर से कहा, “पहले तुम मेरे सामने से हट जाओ, मैं यहां धुप सेक रहा हूँ, और तुम मेरे सामाने आकर खड़े हो गए हो जिसकी वजह से धुप मुझ तक नही पहूँच पा रही है।”

सिकंदर  को साधु की बात सुन कर क्रोध आ गया और वह बोला……ऐ साधु, जानते हो मैं कौन हूँँॽ

मैे सिकंदर हूँ… सिकंदर,

साधु फिर से बोला, “सिकंदर पहले तुम मैरे सामने से हट जाओ फिर मुझसे बात करो।”

सिकंदर साधु के इस आत्‍मविश्‍वास से बहुत ही प्रभावित हूआ है और अपने मन ही मन यह सोचने लगा कि यह साधु मुझसे भी नही ड़रता, इसका मतलब इस साधु में कोई तो बात है।

सिकंदर ने साधु से  कहा, “महाराज, मैं यात्रा पर हूँ, आप मुझे कुछ उपदेश दीजिए।”

साधु ने सिकंदर की ओर देख कर पूछा,“इस समय कहां जा रहे हो तुमॽ”

सिकंदर ने जवाब दिया,“मैं भारतदेश की तरफ जा रहा हूँ। भारत पर विजय प्राप्‍त करके मैं अपने राज्‍य का विस्‍तार करूंगा, यह मेरी इच्‍छा है।”

साधु ने पूछा, “भारत पर विजय करने के बाद फिर क्‍या करोगेॽ”

सिकंदर ने कहा, “महाराज, उसके बाद मैं चीन पर हमला करने जाऊंगा और अपने राज्‍य का और ज्‍यादा विस्‍तार करूंगा।”

साधु ने पूछा, “चीन विजय के बाद तुम क्‍या करोगेॽ”

सिकंदर ने साधु के सवाल का जवाब दि‍या, “मैं चीन विजय के बाद रूस पर विजय पताका फहराऊंगा और पुरी दुनिया जितूंगा।***

साधु ने सिकंदर से पूछा,” तुम पुरी दुनिया को जितने के बाद क्‍या करोगेॽ”

सिकंदर ने साधु से कहा, “महाराज, मैं पुरी दुनिया जितने के बाद शांती से आरााम करूंगा।”

साधु ने सिकंदर कि ओर देख कर मुस्‍कुराते हुए  कहा, “सिकंदर, तुम सच में शांति चाहते हो तो यह विश्‍वविजय का लालच छोड़ कर आ जाओ मेरे पास यही मेरे बगल में और आराम से लेटे-लेटे ही उस परम-‍पिता का चिंतन करो,जो शांति,सत्‍य और आनन्‍द का साधन है।”

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#3 क्‍या आप किसी पर भी आंख बन्द करके भरोसा कर सकते हैं?

Hindi Moral Story – हर ईमान बिकाऊ है।

Stories with Morals in Hindi : एक सेठ थे। बडे ही परोपकारी। जीव-जन्‍तुओं के प्रति सेठ के मन में बडी दया थी।

एक दिन सेठजी सड़क के किनारे से अपने घर जा रहे थे, कि अचानक सेठजी ने देखा सड़क के किनारे एक कसाई बैठा था। उसके हाथ में एक मुर्गा था। कसाई ने मुर्गे को उसके पंखो से पकड़ रखा था। मुर्गा बडी जोर से फड़फड़ा रहा था और मुर्गा दर्द के मारे जोर-जोर से चिल्‍ला रहा था। सेठ ने कसाई से पुछा-

क्‍या करोगे इस मुर्गे का ?

कसाई ने उत्‍तर दिया-

आज तो इसे काट कर 500 रूपये कि कमाई करूंगा सेठजी।

सेठजी ने अपनी जेब से 500 का नोट निकाल कर कसाई को दिया और मुर्गा अपने घर ले आये। अब सेठजी रोज मुर्गे का ध्‍यान रखते। उसके खाने-पीने के लिए सेठजी ने अच्‍छी व्‍यवस्‍था कर दी थी, जिसकी वजह से मुर्गा खा-पीकर काफी मोटा हो गया था।

धीरे-धीरे मुर्गा सेठजी का आदि हो गया था। वो जैसे ही सेठजी को देखता, जोर-जोर से पक-पक-पक-पक करते हुए उनके पास पहुंच जाता। सेठजी भी उसे देखकर बडे खुश होते। एक दिन उनके शहर के एक मंत्रीजी ने सेठजी को चुनाव लड़ने का आग्रह किया और कहा-

सेठजी आप चुनाव क्‍यों नही लड़ते। अगर आप चाहे तो चुनाव जीतकर लोगों की खूब सेवा कर सकते हैं।

सेठजी ने पहले तो मना किया परन्‍तु मंत्रीजी के कहने पर सेठजी मान गये तो मंत्रीजी ने सेठजी से कहा कि-

जल्‍द ही हमारे पार्टी के आला-कमान आपसे मिलने आऐंगे। 

आप उनकी खूब खातिर-दारी करना और वो आपको चुनाव का टिकट दे देंगे। मंत्री के कहे अनुसार एक रात को सेठजी रात्री भाेजन कर के सोने जा रहे थे‍ तभी अचानक पार्टी के आला कमान का सेठजी के घर आगमन हो गया। 

आला कमान का रात को सेठजी के घर ही रहने का विचार था। सो सेठजी ने शुद्ध शाकाहारी भोजन की व्‍यवस्‍था कर कर दी। आला कमान ने खाने के टेबल पर सेठजी से कहा-

सेठजी… शाकाहारी भोजन तो रोज करते हैं। आज तो बटर चिकन खाने का मन हो रहा है।

अब सेठजी परेशान हो गये क्‍योंकि रात बारह बजे कौनसी दुकान खुली होगी जो आला कमान के लिए बटर चिकन उपलब्‍ध करवा सके, जिससे आला-कमान खुश होकर टिकिट दे दे।

तभी सेठजी को वह मुर्गा याद आया। वे घर के अन्‍दर गये। उन्‍हें देखते ही मुर्गा पक-पक-पक-पक करने लगा। सेठजी ने प्‍यार से उसके सिर पर हाथ फिराया, उसके चेहरे पर एक प्‍यार भरा चुम्‍बन दिया और लेकर किचन की और चल दिए।

कहानी से सीख : इस कहानी का Moral ये है कि हर इन्‍सान का व्‍यवहार समय व स्थिति के अनुसार बदलता रहता है। इसलिए यदि कोई बहुत दयालु प्रतीत हो, तब भी उस पर ऑंख बन्‍द करके भरोसा नहीं करना चाहिए। किसी दिन किसी बडे़ स्‍वार्थ की पूर्ति के लिए वो भी धोखा दे सकता है।

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#4 आप कभी कुछ गलत नहीं कर पाऐंगे, अगर…

Hindi Story for Kids – कोई तो देख रहा है।

Stories with Morals in Hindi – एक आश्रम में बहुत‍ सारे बच्‍चे पढ़ते थे। जब उनकी शिक्षा पूरी हो जाती तो घर जाने से पहले उन्‍हें एक अन्तिम परीक्षा उत्‍तीर्ण करनी होती थी। जो बच्‍चा उस परीक्षा में पास होता, उसे ही घर जाने दिया जाता था, जो फेल हो जाता था, उसे फिर से आश्रम में ही रहना पड़ता था।

आज भुवन और संजय की पढ़ाई पूरी हो चुकी थी। दोनों बड़े खुश थे कि आज वे अपने घर जा सकेंगे। आश्रम के द्वार पर दोनों के माता-पिता भी आ चुके थे। दोनों अपने-अपने परिवारों को देख उनसे मिलने दौड़े कि तभी गुरू ने कहा-

ठहरो।

दोनों रूक गए। गुरू ने उनसे कहा-

अभी तुम दोनों की आखिरी परीक्षा बाकी है।

दोनों ने एक साथ कहा-

जी गुरूवर

गुरू ने दोनों को एक-एक कबूतर देते हुए कहा-

इस कबूतर को किसी ऐसी जगह ले जाकर मारना, जहाँ कोई देख न रहा हो। जो इसे पहले मारकर ले आएगा, वह उत्‍तीर्ण माना जाएगा।

भुवन गया और एक सूनसान गुफा में कबूतर की मुंडी मरोड़ कर ले आया जबकि संजय को सुबह से शाम हो गई, लेकिन वह अभी तक नही लौटा। घर वाले भी परेशान होने लगे, लेकिन गुरू के चेहरे पर रहस्‍यमयी मुस्‍कान थी। परिवार किसी अनहोनी की आशंका से मन ही मन संजय के कुशल होने की प्रार्थना करने लगा। तभी संजय उदास सा आता दिखाई दिया। उसके हाथ में कबूतर अभी भी जीवित था। वह नज़रें झुकाए आश्रम के अन्‍दर जाने लगा कि तभी गुरू जी ने उससे पूछा-

तुम इस तरह अन्‍दर क्‍यों जा रहे हो?

संजय ने उदास होकर कहा-

गुरूजी… आपके आदेशानुसार मैं कबूतर को नहीं मार पाया क्‍योंकि कोई भी ना देखे ऐसी कोई सूनसान जगह मुझे कहीं मिली ही नहीं। इसलिए मैं आपकी इस अन्तिम परीक्षा में अनुत्‍तीर्ण हो गया हुँ इसलिए नियमानुसार पुन: आश्रम में जा रहा हुँ।

गुरू ने कहा-

विस्‍तार से पूरी बात बताओ।

संजय ने कहा:

गुरूवर… मैं इंसानो से दूर जंगल में गया, तो वहाँ जानवर देख रहे थे। जंगल में और अन्‍दर तक गया, तो वहां जानवर तो नहीं थे लेकिन पेड़-पौधे अवश्‍य देख रहे थे। मैंने सोचा इस कबूतर को समुन्‍द्र में ले जाकर मांरू, तो वहाँ मछलियाँ देख रही थीं। 

पहाड़ पर गया तो वहाँ का सन्‍नाटा देख रहा था। गुफा में गया, तो अंधकार देख रहा था और इन सबके बीच मैं खुद तो सतत इस कबूतर को देख ही रहा था जबकि आपने कहा था कि मारते समय इसे कोई भी न देखे।

इसलिए मैं ऐसी कोई जगह तलाश नहीं कर पाया, जहां मुझे ये कृत्‍य करते हुए कोई भी न देख रहा हो।

संजय का जवाब सुनकर भुवन आश्रम के अन्‍दर की ओर जाने लगा लेकिन गुरूजी ने उसे नहीं रोका क्‍योंकि उसे पता चल चुका था कि उसका ज्ञान अभी अधूरा है और वास्‍तव में वो अपनी अन्तिम परीक्षा में अनुत्‍तीर्ण हो गया है न कि संजय।

कहानी से सीख : इस कहानी का Moral मात्र इतना ही है कि कोई भी काम करते समय यदि अाप केवल इतना ध्‍यान रख लें कि आपको कोई तो हर समय सतत देख ही रहा है, तो आप कभी भी कोई गलत काम नहीं कर सकेंगे।

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#5 Hindi Stories with Moral – 99 का चक्‍कर

Stories with Morals in Hindi – सेठ धनीराम नाम के एक महाकंजूस सेठ थे और धनीराम की इसी आदत के कारण उनके परिवार वाले बडे ही दु:खी थे।

सेठ के पड़ोस में ही सुखीराम नाम का एक मजदूर भी रहता था। वह पूरे दिन मजदूरी करके जो कुछ भी कमाता, उसी से अपना और अपने परिवार का पालन-पोषण कर लेता और इसके बाद भी यदि कुछ बच जाता, तो उसे अपने परिवार पर खर्च कर देता, जिससे हर समय उसके परिवार में हंसी-खुशी का ही माहौल रहता था।

सुखीराम के घर के इस हंसी-खुशी वाले माहौल को देख एक दिन सेठ धनीराम के बड़े बेटे सुरेन्‍द्र ने अपने पिता धनीराम से पूछा-

“पिताजी… हमारे पास सब कुछ है, फिर भी हम गरीबों की तरह रहते हैं, और उधर सुखीराम को देखो… वह गरीब होते हुए भी कितना सुख से रहता है, जैसे कोई राजा हो। ऐसा क्‍यों हैं?”

सेठ ने अपने बेटे की तरफ देखकर मुस्‍कुराते हुए कहा- “सुखीराम अभी 99 के चक्‍कर में नही पड़ा है, इसलिए।”

पिता की बात सुरेन्‍द्र को समझ में नहीं आई, इसलिए उसने फिर से पूछा- “ये 99 का चक्‍कर क्‍या है?”

धनीराम ने अपने पुत्र को 99 का चक्‍कर ठीक से समझाने के लिए उसे कहा कि- “तुम्‍हारे इस सवाल का जवाब मैं बाद में दूंगा लेकिन आज शाम को जब तुम दुकान से घर आओ, तो एक पोटली मे 99 सोने की अशर्फीया रखकर ले आना। ध्‍यान रहे कि पोटली में 99 अशर्फीयां ही होनी चाहिए। न एक कम, न ही एक ज्‍यादा।”

पिताजी के कहे अनुसार जब सुरेन्‍द्र शाम को एक पोटली में 99 सोने की अशर्फीया डालकर ले आया और पिताजी के हाथ में थमा दी। पिताजी ने वह पोटली फिर से सुरेन्‍द्र को देते हुए कहा कि- “इस पोटली को चुपके से सुखीराम के घर में फैंक कर आ जाओ।”

सुरेन्‍द्र को पिता की बात बड़ी अटपटी लगी लेकिन फिर भी उसने वैसा ही किया, जैसा पिताजी ने कहा और 99 सोने की अशर्फियों वाली पोटली सुखीराम के घर में फैंक आया।

जब सुबह सुखीराम उठा, तो उसे वह पोटली दिखाई दी। सुखीराम उस पोटली को खोल कर देखा, तो हक्‍का-बक्‍का रह गया। 

वह तुरन्‍त भागकर अन्‍दर गया और वह पोटली अपनी पत्‍नी को दिखाई। पत्‍नी की आँखें भी फटी की फटी रह गई क्‍योंकि उन दोनों ने ही कभी इतनी सारी अशर्फियाँ एक साथ नहीं देखीं थी। 

कुछ समय बाद जब दोनों का मन कुछ शान्‍त हुआ तो उन्‍होंने अशर्फियाँ गिनना शुरू किया। कई बार गिनने के बाद भी जब अशर्फियों की संख्‍या 99 ही रही, तो नाराज होते हुए सुखीराम ने भगवान से शिकायत भरे भाव से कहा- “जब देना ही था तो पूरे सौ देता।”

सुखीराम की ये शिकायत सुन उसकी पत्‍नी ने उसका उत्‍साह बढ़ाते हुए कहा- “99 ही है तो क्‍या हुआ। हम दिन-रात मेहनत करके पाई-पाई जमा करेंगे और इसे 100 पूरा करके ही रहेंगे।”

उसी दिन से सुखीराम 99 अशर्फीयों को 100 करने के चक्‍कर में अपने खाने-पीने में कमी करने लगा, रहन-सहन में भी कंजूसी बरतने लगा। हर समय इसी चिन्‍ता में रहता कि क्‍या किया जाए, ताकि एक अशर्फी और कमा सके लेकिन वह कभी भी अपनी पाेटली में अशर्फियों की संख्‍या 100 नहीं कर पाया जबकि अब उसके घर का माहौल भी ठीक वैसा ही हो चुका था, जैसा धनीराम के घर का था। 

अब सुखीराम के घर में भी किसी कहंसने-खेलने की आवाज नहीं आती थी क्‍योंकि अब सुखीराम भी धनीराम की तरह ही लालची और महाकंजूस हो चुका था। 

धीरे-धीरे धनीराम की तरह ही सुखीराम के घर से भी लड़ाई-झगड़े की आवाजें आनी शुरू हो गईं। जब धनीराम के बेटे सुरेन्‍द्र ने सुखीराम के घर में हो रहे शोर को सुना, तो उसे बड़ा आश्‍चर्य हुआ। 

उसने अपने पिता की ओर प्रश्‍न भरी आँखों से देखा जैसे कि पूछ रहा हो कि सुखीराम के घर में ये क्‍या हो रहा है। अपने पुत्र के मन में उठ रहे सवाल को समझते हुए धनीराम ने कहा- “यही है 99 का चक्‍कर।” 

पिता के मुँह से “99 का चक्‍कर” शब्‍द सुनते ही सुरेन्‍द्र को 99 अशर्फियों की पोटली वाली घटना याद आ गई और फिर उसने अपने पिता से आगे कुछ नहीं पूछा क्‍योंकि वह भी 99 के चक्‍कर को पूरी तरह से समझ चुका था।

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पडे निन्‍यानवे के फेर में, भूले हलवा-पुरी।

कैसे एक अशर्फी जुटाउं, पोटली रही अधूरी।

निष्कर्ष 

हमने Stories with Morals in Hindi कहानियों के माध्यम से जीवन के अहम सबको को सीखा और मनोरंजन भी किया। यह कहानियाँ हमें न केवल मनोरंजन देती हैं, बल्कि हमारे जीवन में अच्छाई की सीख भी लाती हैं।

इन कहानियों के मोरल्स ने हमें सिखाया कि कैसे अच्छे काम करने में ही सच्ची खुशी होती है, और कैसे हमें दूसरों का सम्मान करना चाहिए। 

इस ब्लॉग को पढ़कर, आपने यह जान लिया कि कैसे विभिन्न प्रकार की कहानियों से हमें जीवन के मूल मैसेज समझने में मदद मिल सकती है।

धन्यवाद और फिर मिलेंगे!

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