बच्चो के लिए यहाँ कुछ मोरल कहानियाँ है जो न केवल मनोरंजनपूर्ण हैं, बल्कि उन्हें सीख भी प्रदान करती हैं। हम लेकर आएं हैं ‘Moral Stories for Childrens in Hindi’ – जहाँ हर कहानी छोटे बच्चों के लिए एक सीख और मैसेज से भरी होती है। यहाँ बच्चों को नैतिकता, सहजता, और समझदारी के साथ जुड़ी कहानियाँ मिलेंगी जो उनकी प्रतिभा को बढ़ाने के साथ-साथ उन्हें मनोबल भी प्रदान करेंगी। 

चलिए, हमारे साथ Moral Stories for Childrens in Hindi के माध्यम से इस सफलता और शिक्षा के सफर पर निकलें।

Moral Stories for Childrens in Hindi

हर कहानी एक नयी सीख लेकर आती है, जो छोटे सपनों को बड़ा बना सकती है। यहाँ यह कहानियां उन सभी के लिए हैं जो नए ज्ञान की ओर बढ़ने के लिए उत्सुक हैं, और जिन्हें एक सकारात्मक माहौल में अच्छी बातें सीखना है। इस यात्रा में हम बच्चों को समझदारी, साझेदारी, और सफलता के मार्ग पर चलने के लिए तैयार करने का प्रयास करेंगे।

आप सभी से आग्रह है कि इन कहानियों को अपने बच्चों के साथ साझा करें ताकि हम सभी मिलकर एक नये सोच के समर्थन में योगदान कर सकें। इन Moral Stories for Childrens in Hindi की मदद से में, हम सभी मिलकर एक सकारात्मक समाज की दिशा में कदम बढ़ा सकते हैं।

(1) श्रम का महत्व 

Story on Hard Work in Hindi: एक गाँव में चन्दन नाम का एक व्यापारी था। वह एक पुत्र और एक पुत्री का पिता था। उसका पुत्र बहुत ही गैर जिम्मेदार और आलसी था। वह हमेशा बस दोस्तों के साथ मौज-मस्ती में लगा रहता था। चन्दन चाहता था कि वह मेहनती बनें पर वह पिता की एक नहीं सुनता। इस वजह से पिता बहुत परेशान रहता था। 

एक दिन चन्दन ने अपने पुत्र को बुलाया और कहा, ‘ आज तुम्हें खाना तभी मिलेगा जब तुम कुछ कमाकर लाओगे, वरना आज तुम्हें भूखा ही रहना होगा।’ पुत्र यह सुनकर माँ के पास जाकर रोने लगा। पुत्र को रोता देखकर माँ का दिल पिघल गया। माँ ने उसे 100 रुपये दिए और कहा कि पिता जब पूछे तो यह दे देना। 

शाम में जब चन्दन ने पुत्र से कमाई के बारे में पूछा तो पुत्र ने वह 100 रुपये का नोट पिता को दे दिया। पिता ने वह नोट पुत्र को कुएँ में डालकर आने के लिए कहा। पुत्र आराम से वह नोट कुएँ में डालकर आ गया। 

चन्दन ने अपनी पत्नी को मायके भेज दिया और पुत्र को अगले दिन फिर कुछ कमाकर लाने के लिए कहा। इस बार पुत्र अपनी बहन के पास गया और रोते-रोते सारी बात बताई। बहन ने भी उसे 50 रुपये दे दिए। शाम को चन्दन के पूछने पर पुत्र ने 50 रुपये दिखा दिए। चन्दन सब समझ गया। उसने पुत्र को वे 50 रुपये भी कुएँ में डाल आने को कहा और पुत्र ने बिना किसी सवाल के ऐसा ही किया। चन्दन ने अगले दिन बेटी को भी ससुराल भेज दिया और फिर से पुत्र को कुछ कमाकर लाने के लिए कहा। 

पुत्र के पास अब कोई चारा नहीं था। वह बाजार गया और एक जगह जाकर बैठ गया। एक सेठ को कुछ लकड़ियाँ अपने घर पहुँचानी थी। पुत्र के पूछने पर वह सेठ उसे लकड़ियाँ घर पहुँचाने के बदले 10 रुपये देने को तैयार हो गया। पुत्र लकड़ियाँ लेकर चलने लगा। उसके हाथ छिल गए और पैरों में भयंकर दर्द होने लगा। 

शाम को थका हारा वह घर पहुँचा और पिता को वे 10 रुपये दिए। पिता ने फिर उन रुपयों को कुएँ में डालकर आने के लिए कहा। पुत्र को इस बार गुस्सा आया और उसने कहा, ‘ ये रुपये मैंने इतनी मेहनत से कमायें हैं और आप इन्हें कुएँ में डालकर आने की कह रहें हैं ?’ 

चन्दन ने मुस्कुराते हुए कहा, ‘ बेटा, मैं यही तो तुम्हें सिखाना चाहता था। तुमने 150 रुपये बड़ी आसानी से कुएँ में फेंक दिए और ये 10 रुपये फेंकने में तुम्हें कष्ट हो रहा है क्योंकि ये तुम्हारी मेहनत की कमाई है। ‘ चन्दन ने अपनी दूकान की चाबी पुत्र के हाथ में दी और कहा, ‘अब तुम दुकान सँभालने लायक हो गए हो क्योंकि अब तुम श्रम का महत्व जान चुके हो।’ बेटे ने पिता के पैर छुए तो पिता ने बेटे को गले से लगा लिया। 

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(2) डालू चूहे का नया जन्म

Rat Story in Hindi with Moral: डालू चूहा बड़ा ही शैतान था। दूसरों को परेशान करने में उसे बड़ा मजा आता था। अपने चमकीले, सफ़ेद, पैने दांतों पर उसे बड़ा घमंड था। अपने नुकीले दांतों से वह कभी किसी के कपड़े कुतर आता तो कभी खाने-पीने की चीजों की बर्बादी कर देता। चंपक वन में किसी के भी घर में कोई भी नया सामान आता और डालू को उसकी ख़बर लग जाती तो वह पहुँच जाता अपनी शरारत करने। शातिर इतना था कि कभी किसी के भी पकड़ में नहीं आता और बस हीही करके दौड़ जाता।

चंपक वन के सभी जानवर डालू चूहे की हरकतों से बहुत परेशान थे। डालू के माता-पिता भी रोज-रोज के उलाहनों से तंग आ चुके थे। वे डालू को कभी प्यार से समझाते और कभी डांटते पर उस पर किसी भी बात का कोई असर नहीं पड़ता। एक छोटे से चूहे ने सबकी नाक में दम कर रखा था।

शाम को चौपाल पर चर्चा चल रही थी। डालू की बात आई तो गोलू खरगोश बोला, ‘अभी कुछ ही दिन पहले डालू छुपके से मेरे कपड़ों की दूकान में आया और हजारों का नुकसान करके चला गया।’

हीरू हिरण ने कहा, ‘आज मैं अपने खेत में सिंचाई कर रहा था तब ना जाने कब डालू ने नली को बीच में से काट दिया और बहुत सारा पानी बेकार चला गया। मैं उसके पीछे दौड़ा पर हँसते-हँसते जाने कहाँ ओझल हो गया।’

‘मेरी मिठाई की दूकान में तो वह कभी भी आ धमकता है और बहुत सारी मिठाई खाकर और बर्बाद करके चला जाता है। उसे पकड़ने के लिए पिंजरा भी रखा पर शैतान कभी भी पकड़ नहीं आता।’ मोलू कछुएं ने गुस्से में कहा।

सबकी बातें सुनकर भोलू भालू परेशान हो गया। कुछ ही दिन बाद उसकी बेटी की शादी थी। पिछली बार मोंटी बन्दर की शादी में उसने सारे नए-नए कपड़े कुतर डाले थे। इस बार वह कोई गड़बड़ ना कर दे यही सोचकर भोलू भालू चिंता में पड़ गया।

गिन्नी लोमड़ी भोलू भालू की चिंता को भांप गयी। वह बोली, ‘काका ! आप परेशान ना हो। हम मिलकर जल्द ही इस समस्या का कोई हल निकाल लेंगे। डालू के माता-पिता का हम चंपक वन के निवासियों पर बहुत अहसान है। कई बार वे शहर से आये शिकारियों के जाल को काटकर हमें मुक्त कराते हैं। 

इसलिए हम डालू के खिलाफ कोई सख्त कदम उठाकर या उसे कड़ी सजा देकर उन्हें दुखी नहीं कर सकते पर डालू को सबक सिखाना बहुत जरुरी है और इसके लिए मैंने कुछ सोचा है।’

गिन्नी ने सभी को अपनी योजना बताई। सभी ने उसकी योजना से सहमति जताई। डालू के माता-पिता को भी इस बारे में बता दिया गया।

योजना के अनुसार दो दिन के बाद गज्जू हाथी के जन्मदिन का उत्सव मनाया जाना था। जिसके लिए एक बहुत बड़ा आकर्षक और सुन्दर केक बनाया गया। इस केक को बनाने में एक थोड़े बहुत चिपकाने वाले पदार्थ का उपयोग किया गया। सभी को पता था जैसे ही डालू को खबर मिलेगी कि चंपक वन में अब तक का सबसे बड़ा और स्वादिष्ट केक बनाया जा रहा है तो वह खुद को रोक नहीं पायेगा और केक को खाने और ख़राब करने जरुर आएगा।

डालू को जब केक के बारे में पता चला तो वह पार्टी शुरू होने के कुछ देर पहले ही आयोजन स्थल पर पहुँच गया। इतना बड़ा और सुन्दर केक देखकर उसका मन ललचा गया और खुराफात भी सूझने लगी। वह केक काटने से पहले ही छुपके से केक पर चढ़ गया और उसे खाने लगा। 

जैसे ही उसने केक खाना शुरू किया तो कभी उसके हाथ तो कभी उसके पाँव केक में चिपकने लगे। वह एक पाँव छुड़ाता तो दूसरा चिपक जाता और दूसरा छुड़ाता तो पहला। यहाँ तक कि उसके दांत भी आपस में चिपकने लगे जिसकी वजह से वह मदद के लिए चिल्ला भी नहीं पा रहा था।

धीरे-धीरे सभी मेहमान आने लगे। डालू बस धीमी सी आवाज़ में चींचीं कर पा रहा था। पर जान बूझकर कोई भी उस ओर ध्यान नहीं दे रहा था। सभी आपस में बातचीत करने में व्यस्त थे। एक ओर भूख-प्यास और दूसरी ओर केक से बाहर ना निकल पाने के कारण उसका रोना छूट रहा था। 

उसे अपने माता-पिता और सभी की दी गयी सलाहें और सीखे याद आ रही थी। सब उससे कहते थे जो दूसरों का बुरा करता है उसके साथ भी बुरा होता है।।।पर उसने कभी किसी की भी नहीं सुनी। वह मन ही मन पछता रहा था और भगवान् से प्रार्थना कर रहा था, ‘हे ईश्वर! बस इस बार मुझे बचा लो। आज के बाद मैं किसी को परेशान करने का ख्याल भी अपने दिमाग में नहीं आने दूंगा।’

कुछ देर बाद डालू चूहे की दबी-दबी आवाजें सुनकर उसके माता-पिता और सभी जानवर केक के पास आये। डालू बार-बार हाथ जोड़कर मदद की गुहार कर रहा था। वह ठीक से कुछ बोल नहीं पा रहा था पर उसका पछतावा उसकी बातों में साफ़-साफ़ झलक रहा था।

डालू का हुलिया देखकर वहां खड़े सभी जानवरों के बच्चे उस पर हंस रहे थे। 

डालू के माता-पिता ने कहा, ‘यही तुम्हारी सजा है। अब तुम यही रहो और अपने नुकीले दांतों और फुर्तीले शरीर पर घमंड करते रहो।’

डालू को अपने किये पर बहुत अफ़सोस हो रहा था। उसका सर शर्म से नीचे झुका हुआ था। कुछ जानवरों से देखा ना गया और उन्होंने एक लकड़ी के डंडे की सहायता से डालू को केक से बाहर निकाला। इसके बाद थोड़ा गुनगुना पानी मंगवाया गया और डालू को उससे नहलाया गया। वह बिल्कुल साफ़ हो गया और अब वह चल भी पा रहा था और बोल भी।

वह दौड़ा-दौड़ा अपने मम्मी-पापा के पास गया और उनसे लिपट कर रो पड़ा। उसने सभी से काम पकड़कर अपने किये की माफ़ी मांगी और वादा किया कि अब वह किसी को भी कभी भी परेशान नहीं करेगा और सबकी मदद करेगा।

यह कहकर वह पार्टी में आये सभी मेहमानों को नाश्ता और चाय सर्व करने लगा। डालू में आये बदलाव को देखकर उसके माता-पिता और सभी चम्पक वन के वासी बहुत खुश थे। गज्जू हाथी ने जल्दी से नया केक मंगवाया और कहा, ‘आज तो डालू का भी नया जन्म है इसलिए हम दोनों मिलकर केक काटेंगे।’ 

गज्जू हाथी ने डालू को अपनी सूंड पर बैठा लिया और फिर दोनों ने मिलकर केक काटा। इसके बाद सबने केक 

खाया और मिलकर डांस किया। इसके बाद अँधेरा होने पर सभी ख़ुशी-ख़ुशी अपने घर चले गए।

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