प्रेम कहानियाँ हमेशा से हमारे दिलों को छू जाती हैं और एक नई सुबह की शुरुआत के लिए हमें प्रेरित करती हैं। इस ब्लॉग में हम लेकर आएं हैं ‘Love Stories in Hindi’ – एक ऐसी दुनिया जहां हर कहानी अनूठी है और प्रेम की मिसाल होती है।

यहाँ हम साझा करेंगे वो किस्से जो दिल को छू जाएंगे, जो आपको सोचने पर मजबूर करेंगे, और जिनमें होगा वह खास मोमेंट जो आपके दिल को बहुत अधिक बहाएगा। प्रेम का रंग, रूप और रूह हमारे इस सफलता के किस्से में बसी होगी, जिससे हम सभी को एक साथी के साथ जीवन की यात्रा में अगले कदम बढ़ाने के लिए प्रेरित करेगी।

आइए, हम सभी मिलकर इस प्रेम भरी कहानी (Love Stories in Hindi) के सफर में निखरते हैं और जीवन को प्यार भरे रंगों में रंगते हैं।

(1) मैं सीख रही हूँ फिर से प्यार बाँटना

Love Stories in Hindi: उदासी के इस लम्बे दौर में मैंने बना लिए हैं मुस्कुराहटों के कुछ ठिकाने. यूँ तो न जाने कितनी कहानियाँ है इन उदासियों का हिस्सा जिसमें एक कहानी तुम्हारी भी तो है. पर इन कहानियों से चुराकर थोड़े से आंसू मैं बना लेती हूँ हर रोज कुछ मोती और टांग आती हूँ इन्हें उन ठिकानों पर जहाँ इसी तरह जमा की है हर रोज मैंने कुछ मुस्कुराहटें. 

इस तरह उदासी का हिस्सा होकर भी तुम चमक आते हो कभी-कभी मोतियों सी मुस्कान बनकर…पर फिर भी दिल कहता है कि काश! तुमने मेरी मुस्कुराहटों को चुना होता…उन मुस्कुराहटों को जिनके लिए न चुराने पड़ते मुझे अपने ही आंसू.

अपने जीवन के सबसे खुबसूरत और मीठे शब्द मैंने तुम्हारे ही तो नाम किये थे और कभी न सोचा था कि तुम्हारे मन में मेरे लिए इतनी कड़वाहट, इतनी घृणा और इतनी नफरत भर आएगी. अपना अटूट विश्वास मैंने तुम्हें ही तो सौंपा था पर नहीं जानती थी कि तुम्हारे लिए उसका मूल्य दो कोड़ी भी नहीं रहेगा. 

तुम्हें पाने का कभी इरादा न था लेकिन तुम्हें खो देने के डर में जो गलतियाँ हुई और जो नहीं हुई उनका पूर्ण स्वीकार भी तुम्हारी क्षमा नहीं पा सका. जाते-जाते जो शब्द बाण तुमने छोड़े उनसे बहुत कुछ मर चुका था मेरे भीतर. पर मैं नहीं जानती वह कौनसी भावना होती है जो तुमसे लगातार मिले अपमान, तिरस्कार और व्यंग्य बाणों के बावजूद भी खत्म होने का नाम नहीं लेती. 

शायद तुमसे कुछ पलों के लिए मिला स्नेह उन सारी उपेक्षाओं पर भारी है जो अब तक जारी है. शायद कुछ लम्हों की मित्रता किसी कसक या द्वेष को मन में ठहरने ही नहीं देती. शायद मेरे प्रति तुम्हारे एक छोटे से अन्तराल के आकर्षण की गुणवत्ता हर उस विकर्षण को हरा देती है जो तुम्हारे अन्याय और पक्षपात को देखकर उपजता है. 

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यूँ तो न जाने कितने लोगों से तारीफें बटोरी है पर तुम्हारे स्नेह से सिक्त प्रेरणात्मक शब्दों की गूँज आज भी तुम्हारी घृणा से उपजे शब्दों पर हावी है. और तुम्हारी नाराजगी देखकर लगता है जैसे सृष्टि का कण-कण मुझसे रूठा है. कुछ ही दिनों की पहचान…पर जैसे सालों का रिश्ता कोई टूटा है.

कितना कुछ था जो तुमसे कहना था…कितने सारे डिस्कशंस जो अधूरे छूट गए …कितना कुछ नया जो उछल कूद कर तुम्हें बताना था. तुम्हारी अनवरत चलती रिसर्च्स, जिनके बारे में कितना कुछ जानना था…सब अधुरा रह गया. अधूरे रह गए वे सुर भी जो सिर्फ तुम्हारी वजह से फिर जागे थे. 

अधूरी रह गयी न जाने कितनी कवितायेँ जो सिर्फ तुम पर रची जानी थी. अधूरी रह गयी एक कहानी भी, जिसमें बस मुस्कुराहटों को होना था. अब बचा है तो कोरा सन्नाटा…जिसमें सिसकियाँ लेता है वह विश्वास जो तुम मुझ पर ना कर सके, वह भरोसा जो मैंने कभी तोड़ना सीखा ही नहीं और वह दर्द जो सीख रहा है मुस्कुराहटों की आड़ में छिप जाना.

सबका भरोसा पाने वाली मैं… नहीं पा सकी एक तुम्हारा ही विश्वास. और देखो न…तुम्हारा भरोसा पाने की जद्दोजहद में जाने कहाँ छूट गया है मेरा ही विश्वास. क्यों हमारे बीच किसी के भ्रम के बीज बोने की कोशिश को तुमने सफल होने दिया? क्यों तुमने किसी और की आँखों से मुझे पढ़ा. 

बस एक बार…सिर्फ एक बार…मेरी आँखों को पढ़ा होता तो तुम्हें नजर आती वह भावना जो सारी दुनिया की नजरों से तुम्हारी हिफाजत कर सकती थी. तुम्हे अहसास भी नहीं कि सारी दुनिया की ईर्ष्या से बचने की कवायद में तुम उससे ही ईर्ष्या कर बैठे जिसके होठों पर सदा तुम्हारे लिए दुवाएं बसती है. 

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निराशा और झुंझलाहट में अपने जीवन की सारी समस्यायों का ठीकरा तुमने उसके सर फोड़ दिया जो तुम्हारे लिए सकारात्मक ऊर्जा बनना चाहती थी. छोटी-छोटी सी गलतियों को तुमने इतना गंभीर अपराध सिद्ध कर दिया कि अब जरुरत से ज्यादा सजा पाने के बावजूद भी मैं अपराध बोध से मुक्त नहीं हो पाती.

जानती हूँ प्रेम के उच्चतम तल को मैं नहीं छू पायी इसलिए ये सारी शिकायतें हैं, ये सारे प्रश्न है. पर हर रोज तुम याद आते हो और मैं खुद को भूल जाती हूँ…हर रोज तुम्हारी बातें दोहराती हैं और मैं ख़ामोश हो जाती हूँ…तुम सिखा रहे हो अपेक्षाओं के पर काटना…और मैं सीख रही हूँ फिर से प्यार बाँटना. लम्हा-लम्हा दर्ज हो रहा है तुम्हारा मौन मन के किसी कोने में…और एक दिन शायद यही सिखाएगा मुझे सही मायनों में प्रेम. वह प्रेम जो सारी अपेक्षाओं, सारी शिकायतों और सारे दर्द से परे हो. वह प्रेम जो सारे बंधनों से परे हो. वह प्रेम जो सिर्फ और सिर्फ मुक्त करता है, वह प्रेम जो समय की सीमाओं से परे हो.

(2) और मैंने मांग लिया तारों से उनका न टूटना

Prem Kahani in Hindi: तो आखिर आज आ ही गया तुम्हारा जन्मदिन! हर साल कितनी बेसब्री से इंतजार रहता है इस दिन का। और हर बार लगता है जैसे हर साल आने वाला यह दिन जाने कितने सालों बाद आया है। तुम्हें तो पता भी नहीं सालों पहले तुम्हारा जन्मदिन जानने के लिए घंटों कंप्यूटर के सामने बैठकर कितनी मशक्कत की थी मैंने। तुमने तो सारी दुनिया से इसे छिपाने के प्रबंध कर रखे थे। 

पर मैं भी हार कहाँ मानने वाली थी। तुमसे और तुम्हारे दोस्तों से बिना कुछ पूछे तुम्हारा जन्मदिन जो जानना था। और आखिरकार तीन-चार घंटों की मेहनत रंग ले ही आई। बस तब से यह दिन मेरे जीवन का सबसे खास दिन बन गया है। कभी-कभी इस जुनून और दीवानगी के बारे में सोचती हूँ तो बरबस हँसी छूट जाती है और साथ ही हो जाती है ये आँखें भी नम। सोचती हूँ इतनी शिद्दत से ईश्वर को ढूंढा होता तो शायद वे भी मिल जाते। पर देखो न तुम ना मिले।

कितने पागल से दिन थे वे। तुम तो मुझसे कोसों दूर थे पर सिर्फ तुम्हारी एक झलक पाने के लिए दिन में बीसों बार अपना फेसबुक अकाउंट लॉग इन करती और तुम्हारे स्टेटस! वो तो मेरे लिए जैसे रोज की गीता बाँचना था। कभी कई दिनों तक तुम्हारी कोई हलचल ना दिखाई देती तो मैं परेशान हो उठती। इंतजार के वे पल बड़े भारी लगते। रह-रहकर ख़याल आ जाता सब ठीक तो है न? पर तुमसे पूछने की हिम्मत कभी न जुटा पाती।

फिर एक दिन तुमने ही बात करना शुरू किया और मैं पगली, ख़ुशी के मारे हूँ-हाँ से ज्यादा कुछ बोल ही न पायी। धीरे-धीरे हम दोस्त बने और फिर दोस्ती से प्यार का सफ़र…उस वक्त ऐसा लगता था जैसे सारी दुनिया की खुशियाँ मेरे दामन में आकर सिमट गयी हो।

फिर एक दिन जाने क्या हुआ। अचानक तुमने कहा कि यह रिश्ता तोड़ना होगा हमें। कोई वजह भी कहाँ बताई तुमने और बिना कुछ कहे चले गए हमेशा के लिए। पर मैंने कहा था न टूटा हुआ कुछ भी अच्छा नहीं लगता मुझे। बस इसलिए ही मैंने नहीं तोड़ा यह रिश्ता आज तक। 

प्यार के उस अंकुरित बीज को देती रही अपनी वफ़ा का खाद और पानी…और कब यह एक विशाल वृक्ष बन गया पता भी न चला। तुम्हारी अनुपस्थिति में भी तुम्हारा अस्तित्व मेरे जीवन में इतना गहरा होता चला गया कि अब कोई मुझमें मुझे तलाशेगा तब भी सिर्फ तुम्हें ही पायेगा।

लड्डू बहुत पसंद हैं न तुम्हें? हर साल की तरह इस साल भी वही बनाये हैं। तुम्हें याद है? पहली बार जब तुमने मेरे हाथों से बने लड्डू खाए थे तो मेरा नाम ही लड्डू रख दिया था। अब तो सालों गुजर गए इन कानों ने अपने लिए यह नाम नहीं सुना। वैसे भी तुम्हारे सिवा कोई लड्डू कहता भी तो अच्छा कहाँ लगता।

तुम कहाँ हो, कैसे हो, क्या कर रहे हो कुछ भी नहीं पता। मैं तुम्हारी स्मृतियों में हूँ या नहीं यह भी नहीं जानती। तुम तक कुछ पहुँचाऊ तो भी कैसे? यूँ तो कभी मंदिर नहीं जाती पर यह तुम्हारा ही विश्वास था न कि दुआएँ और प्रार्थनाएँ दुनिया के किसी भी कोने में पहुँच जाती है। बस इसलिए हर साल इस दिन लड्डू लेकर पहुँच जाती हूँ मंदिर और मांग लेती हूँ ईश्वर से तुम्हारे जीवन में लड्डुओं की सी मिठास।

अक्सर सखियाँ हँसती है मुझ पर। कहती हैं, ‘कंगना! पागल लड़की! कब तक उसके लिए दुआएँ मांगती रहेगी जिसे तेरी जरा भी फिक्र नहीं। जिसने इतने सालों में एक बार भी तेरी खोज-खबर लेने की कोशिश नहीं की कि तू कैसी है, किस हाल में है। कभी भगवान से अपने लिए भी कुछ मांग लिया कर।’ मैं बस मुस्कुरा कर रह जाती हूँ। अब उन्हें कैसे बताऊँ कि मेरे भीतर मेरा कुछ रह ही कहाँ गया है।

अक्सर तारों से भरी रातों में चाँद को निहारते हुए जब अचानक कोई तारा टूट जाता था तो तुम आँखें बंद कर मांग लेते थे हमेशा के लिए मुझे और मैं बस अपलक तुम्हें देखती रह जाती थी। आज भी तारों से भरी वैसी ही रात है। सखियों की बात याद है कि कभी कुछ मांग लिया कर अपने भी लिए। 

सोच रही हूँ जैसे ही कोई तारा टूटेगा मांग लूँगी मैं भी तुम्हें। पर यह क्या? तारा टूटा और मैंने मांग लिया तारों से उनका ना टूटना। टूटा हुआ कुछ भी अच्छा नहीं लगता न।