नैतिकता और मूल्यों की शिक्षा देना बचपन में बच्चों के विकास के लिए बहुत माना जाता है क्योंकि हम सभी जानते हैं कि बच्चों को कहानियाँ सुनने का बहुत शौक होता है और वे इन कहानियों (Moral Stories for Kids in Hindi) से अपने जीवन के मूल्य और नैतिकता को समझते हैं। हमारे जीवन में नैतिक कहानियों का बहुत महत्व है, क्योंकि यह बच्चों को उनकी मातृभाषा में जीवन जीने की कला सिखाती है।
आज के इस लेख में, हम बच्चों के लिए कुछ ऐसी हिंदी कहानियाँ (Moral Stories for Kids in Hindi) पेश करेंगे जो न केवल बच्चों का मनोरंजन करेंगी, बल्कि उन्हें जीवन को समझने में मदद करेंगी। ये Moral Stories बच्चे के दिल को छूने वाले संदेशों, सबकों और कथाओं से भरी हुई हैं।
#1 Hindi Story for Kids – कोई तो देख रहा है।
Hindi Story for Kids – एक आश्रम में बहुत सारे बच्चे पढ़ते थे। जब उनकी शिक्षा पूरी हो जाती तो घर जाने से पहले उन्हें एक अन्तिम परीक्षा उत्तीर्ण करनी होती थी। जो बच्चा उस परीक्षा में पास होता, उसे ही घर जाने दिया जाता था, जो फेल हो जाता था, उसे फिर से आश्रम में ही रहना पड़ता था।
आज भुवन और संजय की पढ़ाई पूरी हो चुकी थी। दोनों बड़े खुश थे कि आज वे अपने घर जा सकेंगे। आश्रम के द्वार पर दोनों के माता-पिता भी आ चुके थे। दोनों अपने-अपने परिवारों को देख उनसे मिलने दौड़े कि तभी गुरू ने कहा-
ठहरो।
दोनों रूक गए, गुरू ने उनसे कहा-
अभी तुम दोनों की आखिरी परीक्षा बाकी है।
दोनों ने एक साथ कहा-
जी गुरूवर
गुरू ने दोनों को एक-एक कबूतर देते हुए कहा-
इस कबूतर को किसी ऐसी जगह ले जाकर मारना, जहाँ कोई देख न रहा हो। जो इसे पहले मारकर ले आएगा, वह उत्तीर्ण माना जाएगा।
भुवन गया और एक सूनसान गुफा में कबूतर की मुंडी मरोड़ कर ले आया जबकि संजय को सुबह से शाम हो गई, लेकिन वह अभी तक नही लौटा। घर वाले भी परेशान होने लगे, लेकिन गुरू के चेहरे पर रहस्यमयी मुस्कान थी। परिवार किसी अनहोनी की आशंका से मन ही मन संजय के कुशल होने की प्रार्थना करने लगा। तभी संजय उदास सा आता दिखाई दिया। उसके हाथ में कबूतर अभी भी जीवित था। वह नज़रें झुकाए आश्रम के अन्दर जाने लगा कि तभी गुरू जी ने उससे पूछा-
तुम इस तरह अन्दर क्यों जा रहे हो?
संजय ने उदास होकर कहा-
गुरूजी… आपके आदेशानुसार मैं कबूतर को नहीं मार पाया क्योंकि कोई भी ना देखे ऐसी कोई सूनसान जगह मुझे कहीं मिली ही नहीं। इसलिए मैं आपकी इस अन्तिम परीक्षा में अनुत्तीर्ण हो गया हुँ इसलिए नियमानुसार पुन: आश्रम में जा रहा हुँ।
गुरू ने कहा-
विस्तार से पूरी बात बताओ।
संजय ने कहा-
गुरूवर… मैं इंसानो से दूर जंगल में गया, तो वहाँ जानवर देख रहे थे। जंगल में और अन्दर तक गया, तो वहां जानवर तो नहीं थे लेकिन पेड़-पौधे अवश्य देख रहे थे। मैंने सोचा इस कबूतर को समुन्द्र में ले जाकर मांरू, तो वहाँ मछलियाँ देख रही थीं। पहाड़ पर गया तो वहाँ का सन्नाटा देख रहा था। गुफा में गया, तो अंधकार देख रहा था और इन सबके बीच मैं खुद तो सतत इस कबूतर को देख ही रहा था जबकि आपने कहा था कि मारते समय इसे कोई भी न देखे।
इसलिए मैं ऐसी कोई जगह तलाश नहीं कर पाया, जहां मुझे ये कृत्य करते हुए कोई भी न देख रहा हो।
संजय का जवाब सुनकर भुवन आश्रम के अन्दर की ओर जाने लगा लेकिन गुरूजी ने उसे नहीं रोका क्योंकि उसे पता चल चुका था कि उसका ज्ञान अभी अधूरा है और वास्तव में वो अपनी अन्तिम परीक्षा में अनुत्तीर्ण हो गया है न कि संजय।
कहानी से सीख :- इस कहानी का Moral मात्र इतना ही है कि कोई भी काम करते समय यदि आप केवल इतना ध्यान रख लें कि आपको कोई तो हर समय सतत देख ही रहा है, तो आप कभी भी कोई गलत काम नहीं कर सकेंगे।
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#2 योग्य राजा का योग्य फैसला- Children Stories With Morals
Children Stories With Morals- वीरसेन राजा के कोई संतान नहीं थी, इसलिए उन्होंने अपने राज्य से ही किसी योग्य युवक को अपना उतराधिकारी बनाने का निश्चय किया और अपने इस निर्णय के संदर्भ में सेनापति से विचार-विमर्श करते हुए पूछा- ”मेरा यह विचार आपको कैसा लगा सेनापति जी?”
सेनापति ने राजा से कहा-महाराज आपने राज्य की भलाई के लिए बड़ा अच्छा विचार किया है, क्योंकि राज्य के युवक को ही राज्य की समस्याओं की ज्यादा परख होगी।
राजा वीरसेन ने अपने सेनापति से कहलवाकर राज्य में घोषणा करवाई कि राज्य के सभी युवक जो मैंरे बाद इस राज्य के राजा बनने की चाहत रखते हो, वे महल आये क्योंकि राजा वीरसेन उनकी एक परीक्षा लेंगे और जो इस परीक्षा में सफल होगा वही इस राज्य का उत्तराधिकारी बनेगा।
अगले दिन घोषणा के अनुसार राज्य के बहुत से युवक राज महल पहुंच गए और सभी ने राजा का हाथ जोड़कर अभिवादन किया। राजा ने भी अपने हाथ को ऊंचा उठाकर युवको का अभिवादन स्वीकार किया और सेनापति से कहा- मंत्री जी, इन सबको वह चने दे दो, जो मैंने आपको आज प्रात:काल दिए थे।
सेनापति जी ने अपने सेवको से वह चने मंगवाए और राजमहल में आए उन सभी युवको को रेशम की पोटली में रखे चने थमा दिए गए।
राजा ने उन युवको से कहा “आप सभी इस चने को ले जाकर अपने घरो में बो देना और एक माह बाद आप सभी को वापस राजमहल बुलाया जाएगा, जिसका पौधा ज्यादा लम्बा होगा उसी को इस राज्य का नया राजा घोषित किया जायेगा।”
सभी युवक चने लेकर अपने-अपने घर को चल दिए और राजा के कहे अनुसार उन चनों को अपने-अपने घरो में बो दिया।
धीरे-धीरे सभी युवको के घरो में पौधे उगने लगे थे, लेकिन रामवीर के चनों से एक अंकुर तक नहीं फूटा। रामवीर को काफी चिंता हुई पर वह कुछ कर नही सकता था, लेकिन बाकी युवको के पौधे तेजी से बढ़ रहे थे, इसीलिए वे सभी बहुत ही खुश हो रहे थे।
समय के साथ एक माह बित गया और वह दिन भी आ ही गया जब युवको को अपने पौधे को राजमहल ले जाना था। सभी युवको के चेहरे खिले हुए थे, क्योंकि सभी के पौधे ठीक प्रकार से बड़े हो गए थे लेकिन रामवीर दु:खी था क्योंकि उसके बोये हुए चनों से अंकुर भी नहीं निकला था लेकिन फिर भी वह उन चनों को लेकर राजमहल गया।
सभी युवक राजमहल को पहुंचे, राजा ने सभी के पौधे देख कर कहा- तुम लोगो ने बड़ी मेहनत से मैंरे द्वारा दिए चने को लगाया और यह सभी तेजी से बढ़ भी गए हैं, मैं आपको इस बात के लिए धन्यावाद देता हूँ।
राजा की नजर रामवीर के पौधे की तरफ गई तो राजा ने रामवीर से पूछा कि तुम्हारे चने में तो अंकुर भी नही फूटा, ऐसा क्यो?
रामवीर ने कहा- महाराज मैने मेहनत तो बहुत की थी पर शायद मैं इस राज्य का राजा बनने के योग्य नही हूँ शायद इसी कारण भगवान ने मैंरे चनों में अंकुर तक नही फूटने दिया।
वीरसेन राजा ने रामवीर का हाथ ऊंचा उठाते हूए कहा- मैं राजा वीरसेन, रामवीर को ही इस राज्य का नया राजा घोषित करता हूँ।
आर्श्चयचकित युवको ने राजा से पूछा- महाराज, हमारे पौधे कितने हरे-भरे हैं परन्तु आपने रामवीर को राजा बनाया जिसके बीज भी अंकुरीत नहीं हुए हैं, आपने ऐसा क्यों किया?
राजा वीरसेन ने युवको से कहा- ”तुम सभी ने ईमानदारी नही बरती है’ क्योंकि जिस चने को मैने आप सभी युवको को दिया था, वह चने उबले हूए थे। तुम लोगो ने मैरे दिए हूए चने जब नही अंकुरीत हूए तो आपने बेईमानी का सहारा लिया और दुसरे चने को उगाकर मेरे पास ले आए।
रामवीर ने बड़ी ही ईमानदारी से चने उगाए लेकिन जब वे नही उगे तो उसने बेईमानी का सहारा नही लिया, इसीलिए मैंने रामवीर को इस राज्य का नया राजा घोषित किया है।
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कहानी से सीख :- जीवन में ईमानदारी बरते, इससे अच्छे ही परिणाम मिलते हैं। ईमानदारी से किया गया काम आपको सफलता दिलाता है, बेमानी से किया गया काम आपको असफलता ही देगा।
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#3 बिल्ली कैसे पालतू जानवर बनी (Cat Moral Stories for Kids in Hindi)
बहुत समय पहले एक बिल्ली जंगल में रहती थी। वह हमेशा शक्तिशाली जानवरो से मित्रता करना चाहती थी।
एक बार उसने देखा की सभी जानवर शेर से डरते है ,इसलिए उसने शेर से मित्रता कर ली।
एक बार वह शेर के साथ रही थी। सभी जानवरों व शेर ने हाथी के लिए रास्ता साफ किया।
बिल्ली ने सोचा की हाथी शेर से अधिक शक्तिशाली है। इसलिए वह हाथी की मित्र बन गई।
एक दिन हाथी चिंघाड़कर बोला ,”यहाँ शिकारी आ गए है ” और वह वहाँ से भाग गया।
बिल्ली ने सोचा की शिकारी हाथी से ज्यादा ताकतवर है।
इसलिए वह एक शिकारी के साथ शहर चली गई। वह शिकारी बिल्ली को अपने घर ले गया। शिकारी की पत्नी बिल्ली को देखकर नाराज हुई।
तभी चूहां पत्नी के पास से गुजरा। शिकारी की पत्नी चूहे को देखकर जोर से चिल्लाई।
बिल्ली ने दौड़कर चूहें को पकड़ लिया और मारकर खा गई। शिकारी की पत्नी चूहें से छुटकारा पाकर बहुत प्रसन्न हुई।
उसने बिल्ली को अपना पालतू बना लिया। इस प्रकार बिल्ली एक पालतू बन कर रह गई।
कहानी से सीख :- हमें अपनी क्षमता व शक्ति के अनुसार ही लोगो सी मित्रता करनी चाहिए अन्यथा हमें अन्य लोगो का दास बनना पद सकता है।
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#4 अंगूर खट्टे हैं ( Fox Moral Stories for Kids in Hindi )
एक लोमड़ी थी। उसे बहुत भूख लगी थी। वह भटकती हुई एक बाग में पहुँची।
वहाँ उसने बेलों पर पके हुए बहुत – सारे अंगूर लटके हुए देखे। अंगूर देखकर लोमड़ी की भूख और बढ़ गई।
उसने उछलकर अंगूर तोड़ने की सोची। वह उछली परन्तु अंगूरों तक नहीं पहुँच पाई।
वह फिर उछली , परन्तु अंगूर ऊँचाई पर होने के कारण मुहँ ही रहे।
वह बार – बार उछलती रही अपर अंगूरों के गुच्छों को छू भी न सकी। ऐसा करते -करते वह थक गई।
अपनी असफलता पर वह खीझ गई और अंत में वह बोली – “ये अंगूर खट्टे है। अगर मैं इन्हे खाती तो बीमार पड़ जाती। “
ऐसा कहकर उसने अपने मन को दिलासा दे दिया और वहाँ से दुखी होकर चली गई।
कहानी से सीख :- हमें अपनी असफलता से कभी दुःखी नहीं होना चाहिए।
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हमें उम्मीद है कि आपको यह कहानी पसंद आयी होंगी और इन कहानियों से आपकों परेशानी के समय समझ के साथ उस परेशानी से निकलने का साहस भी दिया होगा।
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