Top 10 Moral Stories In Hindi: नैतिकता (Moral) के मूल्यों को हमारे समाज की आधारशिला माना जाता है क्योंकि हर युग में, हर देश में नैतिक कथाओं (Moral Stories In Hindi) ने मानव समाज को प्रभावित करके उसे समृद्ध, संतुलित और बेहतर भविष्य की ओर प्रेरित किया है। ये कहानियाँ हमारे अंदर नैतिक गुणों को जगाने, सीखने और आदर्शों के प्रति प्रेरणा प्रदान करने में अहम भूमिका निभाती है। 

ये नैतिक कहानियाँ (Moral Stories In Hindi) भारतीय संस्कृति, समाज और नैतिकता की प्रतीक मानी जाती हैं। इन कहानियों में सर्वाधिक प्रभावशाली संदेश छिपे होते हैं, जो हमें सच्ची नैतिकता, समर्पण, सहानुभूति और धर्म के प्रति जागरूक करते हैं। यही कारण है कि आज भी हम अपने बच्चों को इन कहानियों के माध्यम से नैतिक और सामाजिक मूल्यों का संकल्प लेने के लिए प्रेरित करते हैं।

Top 10 Moral Stories In Hindi

इस ब्लॉग लेख में, हम आपके साथ कुछ रोचक हिंदी नैतिक कहानियाँ (Best Moral Stories In Hindi) साझा करेंगे। ये कहानियाँ अद्भुत चरित्र, गहरा संदेश और मनोहारी प्रसंगों से भरपूर हैं। ये न केवल बच्चों को बल्कि हर वयस्क व्यक्ति को भी प्रभावित करेंगी और उन्हें नैतिकता की महत्वपूर्णता को समझाने में सहायता करेंगी। तो चलिए, इन नैतिक कहानियों (Moral Stories In Hindi) के साथ एक अद्भुत सफर पर निकलें और समाज को स्वर्णिम भविष्य की ओर ले जाने में अपना योगदान दें।

#1 हर ईमान बिकाऊ है।

Hindi Moral Story in Hindi – एक सेठ थे। बडे ही परोपकारी। जीव-जन्‍तुओं के प्रति सेठ के मन में बडी दया थी।

एक दिन सेठजी सड़क के किनारे से अपने घर जा रहे थे, कि अचानक सेठजी ने देखा सड़क के किनारे एक कसाई बैठा था। उसके हाथ में एक मुर्गा था। कसाई ने मुर्गे को उसके पंखो से पकड़ रखा था। मुर्गा बडी जोर से फड़फड़ा रहा था और मुर्गा दर्द के मारे जोर-जोर से चिल्‍ला रहा था। सेठ ने कसाई से पुछा-

क्‍या करोगे इस मुर्गे का ?

कसाई ने उत्‍तर दिया-

आज तो इसे काट कर 500 रूपये कि कमाई करूंगा सेठजी।

सेठजी ने अपनी जेब से 500 का नोट निकाल कर कसाई को दिया और मुर्गा अपने घर ले आये। अब सेठजी रोज मुर्गे का ध्‍यान रखते। उसके खाने-पीने के लिए सेठजी ने अच्‍छी व्‍यवस्‍था कर दी थी, जिसकी वजह से मुर्गा खा-पीकर काफी मोटा हो गया था।

धीरे-धीरे मुर्गा सेठजी का आदि हो गया था। वो जैसे ही सेठजी को देखता, जोर-जोर से पक-पक-पक-पक करते हुए उनके पास पहुंच जाता। सेठजी भी उसे देखकर बडे खुश होते। एक दिन उनके शहर के एक मंत्रीजी ने सेठजी को चुनाव लड़ने का आग्रह किया और कहा-

सेठजी आप चुनाव क्‍यों नही लड़ते। अगर आप चाहे तो चुनाव जीतकर लोगों की खूब सेवा कर सकते हैं।

सेठजी ने पहले तो मना किया परन्‍तु मंत्रीजी के कहने पर सेठजी मान गये तो मंत्रीजी ने सेठजी से कहा कि-

जल्‍द ही हमारे पार्टी के आला-कमान आपसे मिलने आऐंगे। आप उनकी खूब खातिर-दारी करना और वो आपको चुनाव का टिकट दे देंगे। मंत्री के कहे अनुसार एक रात को सेठजी रात्री भाेजन कर के सोने जा रहे थे‍ तभी अचानक पार्टी के आला कमान का सेठजी के घर आगमन हो गया। आला कमान का रात को सेठजी के घर ही रहने का विचार था। सो सेठजी ने शुद्ध शाकाहारी भोजन की व्‍यवस्‍था कर कर दी। आला कमान ने खाने के टेबल पर सेठजी से कहा-

सेठजी… शाकाहारी भोजन तो रोज करते हैं। आज तो बटर चिकन खाने का मन हो रहा है।

अब सेठजी परेशान हो गये क्‍योंकि रात बारह बजे कौनसी दुकान खुली होगी जो आला कमान के लिए बटर चिकन उपलब्‍ध करवा सके, जिससे आला-कमान खुश होकर टिकिट दे दे।

तभी सेठजी को वह मुर्गा याद आया। वे घर के अन्‍दर गये। उन्‍हें देखते ही मुर्गा पक-पक-पक-पक करने लगा। सेठजी ने प्‍यार से उसके सिर पर हाथ फिराया, उसके चेहरे पर एक प्‍यार भरा चुम्‍बन दिया और लेकर किचन की और चल दिए।

इस कहानी का Moral ये है कि हर इन्‍सान का व्‍यवहार समय व स्थिति के अनुसार बदलता रहता है। इसलिए यदि कोई बहुत दयालु प्रतीत हो, तब भी उस पर ऑंख बन्‍द करके भरोसा नहीं करना चाहिए। किसी दिन किसी बडे़ स्‍वार्थ की पूर्ति के लिए वो भी धोखा दे सकता है।

इस कहानी से क्या सीख मिलती है?

यह कहानी हमें सिखाती है कि हमें परिस्थितियों और लोगों के प्रति सतर्क रहना चाहिए। किसी पर भी आँख मूँदकर भरोसा नहीं करना चाहिए, और हमें सदैव अपनी नैतिकता और मूल्यों पर कायम रहना चाहिए।

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#2 लकड़ी का शेर

Bhavishyavani in Hindi – लकड़ी का शेर: एक राजा अपने पुत्र के नामकरण संस्‍कार का उत्‍सव मना रहा था जिसमें उसके सम्‍पूर्ण राज्‍य की प्रजा को प्रीतिभोज में निमंत्रित किया गया था। राज्‍य के सभी लोग राज पुत्र के नामकरण संस्‍कार में उपस्थित हुए, जिनमें एक प्रसिद्ध ज्‍योतिषी भी थे जिनकी कोई भी भविष्‍यवाणी कभी गलत साबित नहीं हुई थी।

राजा को जब उस ज्‍योतिषी के बारे में पता चला तो अपने पुत्र के भाग्‍य के संदर्भ में कुछ भविष्‍यवाणी करने के लिए उसे राज-दरबार में आमंत्रित किया गया।  ज्‍योतिषी राज-दरबार में पहुँचा और राजा से पूछा कि- महाराज… कहिए, क्‍या आज्ञा है?

राजा ने ज्‍योतिषी से कहा कि- मैने सुना है कि आप ज्‍योतिषी है और भविष्‍य बता सकते हैं। अत: आप से निवेदन है कि मेरे इस पुत्र के बारे में भी कुछ बताईए।

तब उस ज्‍योतिषी ने पुत्र का हाथ देखकर व जन्‍म कुण्‍डली का विश्‍लेषण कर राजा से कहा कि- आपके पुत्र की आयु बहुत कम है और इसकी मृत्‍यु का कारण एक शेर होगा। 

ज्‍योतिषी की ये बात सुनकर राजा थोड़ा चिन्तित हुआ और अपने पुत्र का ज्‍यादा से ज्‍यादा ध्‍यान रखने लगा। धीरे-धीरे समय बीता और राजा के पुत्र का प्रथम जन्‍मदिवस आया।

राजा ने अपने पुत्र के प्रथम जन्‍मदिवस के समारोह पर पुन: एक उत्‍सव आयोजि‍त किया जिसमें सभी प्रजागणों को प्रीतिभोज पर आमंत्रित किया। सभी प्रजागणों ने राजा के पुत्र के जन्‍म दिवस की खुशी में उसे कुछ न कुछ उपहार स्‍वरूप भेंट किया। उन उपहारों में एक लकड़ी का शेर भी था जिसे देखकर राजा का पुत्र बहुत खुश हुआ और वह उसी लकड़ी के शेर के साथ खेलने लगा।

खेलते-खेलते ही उस लकडी के शेर की एक फैंच राजा के पुत्र को लग गई। पहले तो किसी ने उस चोट पर ज्‍यादा ध्‍यान नहीं दिया लेकिन धीरे-धीरे वह चोट इतनी गहरी हो गई कि राजा के पुत्र का बड़े से बड़े चिकित्‍सक द्वारा ईलाज संभव न हो सका और अन्‍त में उस बालक की मृत्‍यु हो गई और इसकी खबर सम्‍पूर्ण राज्‍य में आग की तरह फैल गई।

अब राजा को उस ज्‍योतिषी की भविष्‍यवाणी याद आई और उसने उस ज्‍योतिषी को सेनापति से कहकर फिर से राजदरबार में बुलवाया। जब ज्‍योतिषी राजदरबार में दुबारा आया तो राजा ने उस ज्‍योतिषी से कहा कि- तुमने तो कहा था कि मेरा पुत्र एक शेर के द्वारा मारा जाएगा परंतु मेरा पुत्र तो एक लकडी की फैंच के चुभ जाने से मृत्‍यु को प्राप्‍त हुआ। इसलिए तुमने मेरे पुत्र के संदर्भ में गलत भविष्‍यवाणी ही है जिसकी सजा तुम्‍हे मृत्‍यु दण्‍ड के रूप में भोगनी पड़ेगी।

ज्‍योतिषी, राजा की बात सुनकर डर गया और कोई उपयुक्‍त जवाब सोंचने लगा। अचानक उसे एक विचार सूझा और उसने राजा से कहा कि- महाराज… मैंने ये नहीं कहा था कि आपका पुत्र शेर के द्वारा मारा जाएगा। मैंने ये कहा था कि आपके पुत्र की मृत्‍यु का कारण एक शेर होगा और आपका पुत्र जिस खिलौने की लकड़ी के फैंच के चुभने से मृत्‍यु को प्राप्‍त हुआ, वह खिलौना एक लकड़ी का शेर था। इसलिए मेरी भविष्‍यवाणी तो इस बार भी सही हुई है।

राजा को उस ज्‍योतिषी का जवाब सन्‍तुष्टिपूर्ण लगा इसलिए उन्‍होंने उसे अपने राज्‍य का राज-ज्‍योतिषी पद प्रदान कर उनका सम्‍मान किया।

तो क्‍या ये माना जाए कि ज्‍योतिषी लोग केवल शब्‍दों का हेरफेर करके किसी भी तरह से अपनी बात को सही साबित कर लेते हैं अथवा वे अपनी भविष्‍यवाणियाँ कुछ इसी तरह से करते हैं, ताकि एक ही बात का अलग-अलग परिस्थितियों में अलग-अलग मतलब निकाला जा सके?

इस कहानी से क्या सीख मिलती है?

यह कहानी हमें सिखाती है कि हमें ज्योतिषीय भविष्यवाणियों पर आँख मूंदकर भरोसा नहीं करना चाहिए। भविष्य अनिश्चित होता है और इसे लेकर कोई भी निश्चित रूप से नहीं बता सकता। हमें हमेशा अपने विवेक और तर्क का उपयोग करके निर्णय लेने चाहिए।

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#3 1 किलो घी – लघुकथा

Moral Stories In Hindi एक किसान था जिसके पास कई सारी गाय-भैंसे थी और वह उन गाय-भैंसों के दूध का घी बेचकर ही अपना गुजारा कर पाता था। वह किसान काफी सीधा-साधा, ईमानदार व बुद्धिमान था और सारे गांव में उसकी काफी इज्‍जत थी। हालांकि उस किसान के पास वजन तोलने का कोई उपयुक्‍त बांट नहीं था, लेकिन फिर भी बिना किसी प्रकार की शंका किए हुए सारे गाँव वाले उसी से घी खरीदते थे, क्‍योंकि उन्‍हें विश्‍वास था कि वह किसान ईमानदार है और उन्‍हें कभी भी कम घी नहीं देगा।

उन गाँव वालों में एक बेकरीवाला भी था जो सभी अन्‍य गांव वालों की तरह ही उस किसान से रोजाना एक किलो घी लेता था। लेकिन एक दिन बेकरीवाले ने सोंचा कि

क्‍यों न घी का वजन करके देखा जाये कि क्‍या वास्‍तव में वह किसान मुझे पूरा एक किलो घी देता है या एक किलो से कम घी देता है।

जब बेकरीवाले ने उस घी का वजन किया तो उसने देखा कि घी एक किलो नहीं था। वह इस बात पर किसान से बहुत नाराज हुआ और दोनों में कहासुनी हो गयी। बात इतनी बिगड गई कि बेकरीवाले ने किसान पर पुलिस केस कर दिया और नोबत अदालत ( Court ) तक जाने की आ गई। जब सारी बात Judge के सामने आई तो Judge ने किसान से पूछा-

क्‍या तुमने बेकरीवाले को जानबूझकर घी कम दिया है या तुमसे गलती हो गयी है।

किसान ने प्रत्‍युत्‍तर दिया-

Judge साहब! न तो मैंने इसे घी कम दिया है और न ही मुझसे कोई गलती हुई है।

किसान की यह बात सुनकर जज ने हैरानी से पूछा कि-

तुम घी का वजन तौलने के लिए क्‍या साधन प्रयोग करते हो?

किसान ने प्रत्‍युत्‍तर दिया कि-

Judge साहब! मेरे पास घी का वजन करने के लिए कोई उचित साधन तो नहीं है।

तब जज ने हैरानी से पूछा-

तो तुम घी का वजन कैसे करते हो?

किसान ने कहा-

मेरे पास वजन मापने के लिए एक पैमाना है।

न्‍यायाधीश ने पूछा-

वह पैमाना क्‍या है?

किसान ने प्रत्‍युत्‍तर दिया-

बेकरीवाला मुझसे लंबे समय से घी खरीद रहा है इसलिए बैकरीवाले को घी कम न जाए, इसलिए मैं पहले बेकरीवाले से ही एक कि‍लो Bread ले लेता हूँ और उसी एक किलो Bread को पैमाना मानकर एक किलो घी का वजन कर लेता हूँ।

किसान का यह जवाब सुनकर न्‍यायधीश महोदय को सब बात समझ में आ गई कि वह किसान घी कम नहीं तोलता था बल्कि उस बेकरीवाले के Bread का ही वजन एक किलो से कम रहता था। न्‍यायधीश ने किसान को बाईज्‍जत बरी कर दिया लेकिन भरी अदालत में बेकरीवाला काफी शर्मिन्‍दा हुआ, क्‍योंकि किसान, बेकरीवाले को धोखा नहीं दे रहा था बल्कि बेकरीवाला ही लम्‍बे समय से किसान को धोखा देता आ रहा था और ये बात भरी अदालत में किसान से साबित कर दी थी।

इस लघुकथा का सारांश यही है कि जैसे आचरण की अपेक्षा आप दूसरों से अपने लिए रखते हैं, वैसा ही आचरण आपको दूसरों के लिए भी रखना चाहिए। यदि आप आप दूसरों को धोखा देंगे, तो उस धोखे का नुकसान जाने-अनजाने स्‍वयं आपको भी भोगना पडेगा और दूसरों के साथ बेईमानी करके आप उनसे 100% ईमानदारी की उम्‍मीद नहीं रख सकते।

इस कहानी से क्या सीख मिलती है?

यह कहानी हमें सिखाती है कि जीवन में ईमानदारी, न्याय और आत्मविश्वास का बहुत महत्व है। हमें हमेशा दूसरों के साथ ईमानदारी से पेश आना चाहिए और लालच से दूर रहना चाहिए। न्याय हमेशा जीतता है, इसलिए हमें कभी भी गलत कामों से डरना नहीं चाहिए।

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#4 धन, वरदान भी है और श्राप भी।

Moral Stories In Hindi – एक गाँव में एक धनी व्‍यापारी रहता था। उस व्‍यापारी के घर के पास ही एक मोची की छोटी सी दुकान थी। उस मोची में एक खास आदत थी कि जब भी वह किसी के जूते को सिलता था, तो भगवान के भजन गया करता था, लेकिन व्‍यापारी ने कभी उसके भजनों की तरफ ध्यान नहीं दिया।

एक बार व्‍यापारी के एक सौदे के बिगड़ जाने के कारण उसे छोटा सा नुकसान हो गया। उस नुकसान को व्‍य‍ापारी सह न सका और इसी चिंता में उस व्यापारी की तबियत खराब हो गई। व्‍यापारी के पास पैसे की कोई कमी नहीं थी सो उसके पुत्रो ने बड़े से बड़े वैध को दिखा दिया लेकिन कोई भी व्‍यापारी की बीमारी का ईलाज नहीं कर सका। व्‍यापारी की तबियत ठीक होने के बजाय दिन ब दिन बिगड़ती ही जा रही थी। यहां तक कि उसका चलना, फिरना, घूमना आदि सब बन्‍द हो गया था।

एक दिन वह घर में अपने बिस्तर पर सो रहा था कि अचानक उसके कान में मोची के भजन गाने की आवाज सुनाई दी।

आज पहली बार व्‍यापारी ने मोची के भजन की ओर अपना ध्‍यान केन्‍द्रीत किया था। व्‍यापारी कुछ ही देर में मोची के भजनो से इतना मंत्र मुग्ध हो गया कि उसे ऐसा लगा जैसे मोची स्‍वयं भगवान से अपना मिलन कर रहा हो। व्‍यापारी अब तो हर रोज उस मोची के भजनो का इन्‍तजार करने लगा। उस मोची के भजनों को सुन-सुन कर उस व्‍यापारी की तबियत धीरे-धीरे पूरी तरह से ठीक हो गयी।

इसी खुशी में व्‍यापारी ने मोची को अपने पास बुलाया और कहा, “शायद तुम्‍हे पता नहीं है कि मैं बहुत ही ज्‍यादा बीमार हो गया था, बड़े-बड़े वैध से अपना ईलाज करवाया, परन्‍तु मैं स्‍वस्‍थ नही हो पा रहा था। तुम्हारे भजनों को सुन कर ही मेरे स्वास्थ्य में सुधार हो गया। इसलिए मैं तुम्‍हे ईनाम में 1000 रू देना चाहता हूँ।

ईनाम…, मोची खुशी से फूला नही समा रहा था।

व्‍यापारी ने मोची को 1000 रूपए दिए। मोची ईनाम लेकर अपने घर आ गया और रात्री भोजन करने के बाद वह अपने बिस्‍तर पर सोने चला गया। लेकिन मोची को उस रात बिल्कुल नींद नहीं आई। वो सारी रात इसी चिंता में रहा कि कहीं कोई इन 1000 रू को चुरा नहीं ले। यही सोंचता रहा कि इतने सारे पैसों को कहाँ छिपा कर रखूं और इनसे क्या-क्या खरीदना है?

1000 रू की चिंता में मोची इतना परेशान हो गया कि अगले दिन वह अपने काम पर भी नहीं जा पाया। मोची का मन अब भजन में न रह कर इस बात पर रहता कि वह 1000 रू का क्‍या करे। अब भजन गाना तो जैसे वो भूल ही गया था। धीरे-धीरे मोची का काम पर जाना बंद हो गया और मोची का व्‍यापार धीरे-धीरे चौपट होने लगा।

एक दिन मोची उस व्‍यापारी के घर गया और व्‍यापारी से कहने लगा, साहब जी, आप अपने यह 1000 रू वापस रख लीजिये। इस 1000 रू की वजह से मेरा धंधा-व्‍यापार बन्‍द हो गया, मैं भगवान का भजन करना ही भूल गया हूँ। 1000रू ने तो मेरा भगवान से नाता ही तोड़ दिया। मोची ने 1000रू व्‍यापारी को वापस दे दिये और फिर से अपने काम में लग गया।

Moral: धन एक शक्ति है। जो इस शक्ति को ठीक से समझ कर उसे नियंत्रित करना जानता है, धन उसके लिए वरदान के समान है, लेकिन जो इसकी शक्ति को नहीं समझ पाता, यही धन उसके जीवन को नर्क के समान भी बना देता है।

इस कहानी से क्या सीख मिलती है?

यह कहानी हमें सिखाती है कि हमें धन के पीछे नहीं भागना चाहिए, बल्कि हमें अपने काम पर ध्यान देना चाहिए और ईश्वर के प्रति भक्ति में लीन रहना चाहिए। धन आता-जाता रहता है, लेकिन मन की शांति और सुख हमेशा बने रहते हैं।

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#5 केवल मां ही महान नहीं होती।

Moral Stories In Hindi – एक दिन Garden में एक लड़की और उसके पिता खेल रहे थे। अचानक से उस लड़की ने अपने पिता से पूछा , “पापा, आप मुझे मेरे 18वें जन्मदिन पर क्या Gift दोगे।

लड़की उस समय बहुत ही छोटी थी, इसलिए उसके पिता ने कहा , “बेटा अभी तो आपके 18वें जन्मदिन में काफी समय बाकी है।

उस बात के कुछ दिन बीत जाने के बाद वह लड़की उसी Garden में खेल रही थी और अचानक वह जमीन पर गिर गई। उसके पिता उसे तुरंत Hospital ले गए।

जब Doctor ने उसका Check up किया तो Doctor को पता चला कि उसके Heart में Hole है।

Doctor ने ये बात उसके पिताजी को बताई और कहा कि “यदि समय पर इसके लिए Heart का इंतजाम नहीं हुआ तो हम इस बच्‍ची को नही बचा पाएगें।”

यह बात सुनकर उसके पिता के पैरों तले ज़मीन खिसक गई और उसकी आर्थिक स्थिति भी कोई ज्‍यादा अच्‍छी नहीं थी तो उसने एक खत लिखा और वह खत अपनी पत्नि को देते हुए कहा, “जब इस बच्‍ची का 18वां जन्‍मदिन आए तब उसे ये खत दे देना। इस खत को तुम मत पढ़ना। मैं पैसों का इंतजाम करने जा रहा हूँ।”

इतना कहकर वह वहाँ से चला गया। उस लड़की का ईलाज हुआ और वह ठीक हो गई। धीरे-धीरे समय गुजरा और उस लड़की का 18वां जन्‍मदिन भी आ गया। उसके पिता द्वारा लिखा गया खत उसकी माता ने उसके 18वें जन्‍मदिन पर दे दिया।

उस खत में लिखा था,

मेरी प्रिय बेटी,

याद है आपने मुझसे एक बार पूछा था कि, “पापा जब तुम्‍हारा 18वा जन्मदिन आयेगा, तो मैं तुम्‍हें क्या Gift दूंगा?”

उसके कुछ दिनों बाद ही तुम्‍हारी तबीयत खराब हो गई थी। दरअसल तुम्‍हारे Heart में Hole था, और  Doctor ने कहा था कि सही वक्‍त पर तुम्‍हारे लिए एक Heart का इंतजाम नहीं किया गया, तो तुम्‍हारी मृत्‍यु हो जाएगी।

बेटा मेरी स्थिति इत‍नी ठीक नहीं थी कि मैं तुम्‍हारे लिए एक  Heart की व्‍यवस्‍था के लिए पैसों का इन्‍तजाम कर पाता और इतना कठोर मेरा दिल भी नहीं कि मैं तुम्‍हारी जान बचाने के लिए किसी दूसरे के बेटे की कुरबानी दूँ। इसलिए मैंने निश्‍चय किया कि मैं अपना Heart तुम्‍हें दे दूँ, जिससे तुम्‍हारी जान भी बच जायेगी और तुम्‍हारे द्वारा अपने 18वें जन्‍मदिन पर मांगा हुआ Gift भी तुम्‍हें मिल जायेगा।

अलविदा मेरी  बच्ची!

पिता हमेंशा ही कठोर मालूम पड़ते हैं, लेकिन वे आपकी खुशी के लिए अपना जीवन तक बलिदान करने के लिए तत्‍पर रहते हैं। हां, वो एक अलग बात है कि वे आपको कभी जताते नहीं हैं।

इस कहानी से क्या सीख मिलती है?

यह कहानी हमें सिखाती है कि जीवन में कई चुनौतियां आती हैं, लेकिन प्यार, त्याग और कर्म से हम उन पर विजय प्राप्त कर सकते हैं। हमें अपने माता-पिता के प्रति कृतज्ञ रहना चाहिए और उनके प्यार का सम्मान करना चाहिए।

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#6 सत्य सामने आ ही जाता है। 

Moral Stories In Hindi : एक गाँव में एक बहुत ही धनि और प्रतिष्ठावान  व्यक्ति सुभान मिया ( नाम बदला हुआ है। ) रहते था।

एक दिन क्या हुआ की सुभान मिया अपने घर से खेत की और निकले खेत में जाने के कुछ समय बाद सुभान मिया को बड़ी ज़ोर की टट्टी आ गयी।

सुभान मिया ने सोचा की इस खेत में कोई तो मुझे नहीं देख रहा है।  अब क्या करूँ ? सुभान मिया ने सोचा की घर जाऊँगा तब तक तो टट्टी निकल ही जायेगी।

वह खेत में ही एक बैर के वृक्ष के निचे टट्टी करने के लिए बैठ गया।  उस बैर से हवा के कारण पक्के हुए बैर भी निचे गिर गए थे।

उस व्यक्ति ने उन बैरो को उठाया और खाना शुरु कर दिया और साथ साथ में टट्टी भी कर रहा था। उसने सोचा यहाँ कौन देख रहा है मुझे ?

उसने एक साथ दोनों कार्य किये जो की वातावरण की द्रष्टि से गलत था।

एक तो बाहर टट्टी नहीं करनी चाहिये क्योंकि वातावरण प्रदूषित होता है। दूसरा उसके साथ में वह बैर भी खा रहा था।  खाना – पखाना दोनों साथ जिससे की स्वास्थ्य को नुकसान।

जब वह खेत से घर को जा रहा था , तो रास्ते में चलते – चलते सोच रहा था की किसी ने एक साथ दोनों कार्य करते हुए देखा तो नहीं। वरना गाँव में बहुत इज्जत है हमारी सब धुल में मिल जाएगी।

उसी दिन शाम को गाँव में एक नाच गाने का कार्यक्रम रखा गया था।  गाँव के सभी प्रतिष्ठित व्यक्तियों को बुलाया गया था। जिसमे सुभान मिया भी थे।

सुभान मिया को सबसे आगे बिठाया गया था , क्योंकि गाँव के सबसे धनि व्यक्ति थे।

जब कार्यक्रम शरू हुआ तो कुछ देर बाद एक वैश्या नाचने के लिए मंच पर आयी।

वैश्या ने जैसे ही ठुमका लगाया सब लोग ताली बजाने लग गए।

वैश्या ने गाना शरू किया और जैसे ही यह पंक्ति गाई की – “सुभान तेरी बतिया जान गयी राम !”

सुभान मिया के तो तोते उड़ गए। उसने सोचा अरे में तो अकेले में टट्टी किया था वहाँ कोई नहीं था तो इस वैश्या को कैसे पता चल गया।

उसने वैश्या के ऊपर नोटों की गड्डी उड़ा दी । ताकि अब वैश्या आगे कुछ न बोले।

वैश्या ने आगली पंक्ति गाई – “सुभान तेरी बतिया कह दूँगी राम !”  और ठुमका लगाया।

सुभान मिया ने सोचा की अभी तो कुछ कहा नहीं और यदि कह दिया तो पोल खुल जायेगी। उसने वैश्या को अपनी हीरे से जड़ी अंगूठी दे दी। वैश्या फिर भी न रुकी !

वैश्या ने गाया – “सुभान तेरी बतिया कह रही हूँ राम !”

सुभान मिया के तो पसीने छूटने लग गए। अब तो इज्जत ख़राब  उसने अपने ऊपर ओढ़ी हुयी साल जिसमे हीरे मोती जड़े थे बहुत कीमती थी  वैश्या की और फेंक दी। ताकि वह अब तो चुप हो जायेगी।

वैश्या ने सोचा की सुभान मिया को गीत बहुत पसंद आ रहा है। उसने और ज़ोर से ठुमका लगाया और गाने लगी – “सुभान तेरी बतिया कहने जा रही हूँ राम !” 

सुभान मिया अपनी जगह से उठे और बोले – “वैश्या की जात न तुझे अपनी इज्जत की फिकर रहती है और न ही दुसरो की इज्जत का ख़याल रखती है। ”

कब से कह रही है सुभान तेरी बतिया कह दुँगी राम।  क्या कहेगी ? कह दे।

यही कहेगी ना की सुभान मिया बैर के पेड़ के निचे टट्टी किये थे और साथ में बैर भी खाए थे यही कहेगी ना। 

वैश्या ने कहा यह बात तो मुझे पता ही नहीं थी। यह तो आपने अभी बताई।

मैं तो भगवान का भजन गा रही थी की “है ! प्रभु में तो गुणगान कर दूंगी तेरा गुणगान कर रही हूँ ”

इस कहानी से क्या सीख मिलती है?

यह कहानी हमें सिखाती है कि हमें हमेशा सार्वजनिक स्थानों पर शिष्टाचार बनाए रखना चाहिए, लालच से बचना चाहिए, अपनी गलतियों से सीखना चाहिए, सच बोलने का साहस रखना चाहिए, और अनुमानों से बचना चाहिए।

#7 गौतम बुद्ध का प्रवचन और धैर्य

Moral Stories In Hindi : एक दिन भगवान बुद्ध को एक जगह पर प्रवचन देने के लिये जाना था| वक्त हो गया भगवान बुद्ध आये और बिना कुछ कहे है अपना प्रवचन ख़त्म कर दिया और वहां से चले गए| वहाँ पर कम से कम डेढ़ सौ श्रोता उपस्थित थे। 

अगले दिन भी ऐसा ही हुआ 100 लोग उपस्थित थे पचास कम हो गये बुद्ध आये और बिना कुछ  चले गए। 

तीसरे दिन भी बुद्ध आये लेकिन सिर्फ लगभग 60 लोग ही थे इसलिये भगवान बुद्ध ने कुछ भी नहीं कहा और वहाँ से चले गये। 

चौथे दिन जब भगवान बुद्ध प्रवचन देने आये तब केवल 14 लोग ही उपस्थित थे चौथे दिन भगवान बुद्ध ने प्रवचन सुनाये और वो सभी 14 लोग भगवान बुद्ध के प्रवचनों से इतने प्रभावित हुये की उन्होंने अपना घर बार छोड़ दिया और भगवान बुद्ध के साथ हो गए और उनका अनुसरण करने लग गये।

तभी उन्होंने पूछा की भगवान आपने पहले, दुसरे, और तीसरे दिन प्रवचन क्यों नहीं सुनाये जब ज्यादा लोग थे उनको भी ज्ञान प्राप्त होता। 

तब बुद्ध ने उनकी जिज्ञासा को शांत करते हुये जवाब दिया की- वे सभी लोग अधीर थे उनमे धैर्य रखने का गुण नहीं था इसलिये वे एक – एक करके चले गये अगर उनमे धैर्य होता तो वे अगले दिन भी आते और प्रवचन की प्रतीक्षा करते। 

बुद्ध ने कहा की- मुझे भीड़ नहीं, काम करने वाले लोग चाहिये यहाँ वही टिक सकेगा जिसमे धैर्य होगा जिसमे धैर्य नहीं था वह यहाँ से चला गया और ज्ञान से वंचित रह गया। 

इस कहानी से क्या सीख मिलती है?

यह कहानी हमें सिखाती है कि जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए हमें धैर्यवान और लगनशील होना चाहिए। हमें क्षणिक निराशाओं से हार नहीं माननी चाहिए और अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए लगातार प्रयास करते रहना चाहिए।

#8 मक्खी रानी जंगल की महारानी

Moral Stories In Hindi : एक समय की बात है एक जंगल में शेर रहता था। शेर पूरे जंगल का राजा था । इसलिए वह अपने आप पर बहुत घमंड करता था और दूसरे जानवरों को डराता था और उन्हें मारकर खा जाता था ।

इसी बीच एक दिन उसी जंगल में एक मक्खी शेर के पास आई उस समय शेर एक पेड़ की छांव में आराम कर रहा था।

तभी मक्खी आकर शेर के कानों में गुनगुनाने लगी जिससे शेर को बहुत गुस्सा आ रहा था और वह मक्खी को भाग जाने के लिए कहता है और कहता है , कि मुझे परेशान मत करो नहीं तो मैं तुम्हें मार डालूंगा।

यह सुनकर मक्खी हंसने लगती है और कहती है की अरे शेर तुम तो बहुत ही मूर्ख हो तुम्हें अपनी शक्तियों पर बहुत घमंड है तुम जंगल के छोटे छोटे पशुओं को अपनी शक्ति से डराते हो लेकिन आज मैं तुम्हें मजा चखाने वाली हूँ।

इतने में शेर को गुस्सा आ जाता है और वह मक्खी को मारने के लिए झपटता है । और मक्खी को पंजा मारने की कोशिश करता है लेकिन मक्खी उड़कर शेर के कान पर बैठ जाती है और उसे डंक मार देती है शेर मक्खी को मारने के लिए पंजे से अपने ही कान पर हमला करता है।

मक्खी तो उड़ जाती है  लेकिन उसके कान से खून बहने लगता है फिर मक्खी शेर की नाक पर बैठ जाती है से फिर से हमला करता है और फिर से अपनी नाक को लहूलुहान कर लेता है । इसी प्रकार शेर का पूरा शरीर खून से लथपथ हो जाता है।

फिर शेर मक्खी के सामने हार मान जाता है और कहता है कि मैंने अपनी पराजय स्वीकार कर ली है और मैं तुम्हें जंगल की महारानी मानता हूं और घोषणा करता हूं कि आज से तुम जंगल की महारानी हो ।

इतना सुनते ही मक्खी खुश हो जाती है और इतराती हुई पूरे जंगल में शोर मचाने लगती है कि मैं जंगल की महारानी हूं और मक्खी के मन में घमंड आ जाता है ।

यह सब देख एक चालाक लोमड़ी से रहा नहीं जाता और वह मक्खी से कहती है कि अरे मक्खी रानी अगर तुम इतनी शक्तिशाली हो और तुम्हें इतना ही विश्वास है और घमंड है अपनी शक्तियों पर, तो हम सभी जंगल के जानवर आपको तभी जंगल की महारानी मानेंगे जब तुम सामने बने उस जाले में बैठी लकड़ी से युद्ध करो और उसे हराकर दिखाओ तभी हम तुम्हें जंगल की महारानी स्वीकार करेंगे।

मक्खी तो पहले से ही अपने घमंड में चुर थी उसे लड़ाई से संबंधित किसी भी प्रकार की बातों का होश नहीं था उसने बिना सोचे समझे ही उस मकड़ी के जाले में हमला कर दिया और उस जाले में फस गई ।

मक्खी ने उस जाले से निकलने की बहुत कोशिश की लेकिन जाले में से नहीं निकल पाई और फंसे रहने के कारण मक्खी ने दम तोड़ दिया बाद में मक्खी को मकड़ी खा गई इस प्रकार मक्खी रानी का घमंड टूट गया और उसका पुरा अस्तित्व ही खत्म हो गया।

इस कहानी से क्या सीख मिलती है?

मक्खी की इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमें अपनी शक्तियों पर घमंड नहीं करना चाहिए और कुछ भी कार्य करने से पहले अच्छी तरह से सोच विचार कर लेना चाहिए और अपनी क्षमता अनुसार अपनी मर्यादा में रहना चाहिए।

#9 सच्‍चे हितेषियों को उचित मान देना आपकी जिम्‍मेदारी है।

Moral Stories In Hindi राजनगर में धनीराम नाम का एक धनवान सेठ रहता था। सेठ के एक पुत्र था जिसका नाम मंगल था। उस सेठ की नगर में एक बहुत ही बड़ी हवेली थी। कहीं भी किसी प्रकार की कोई कमी नहीं थी, लेकिन सेठ के पुत्र मंगल के कोई संतान नही थी। धनीराम ने मंदिरो-मस्जिदों में बड़ी मिन्‍नते की।

एक दिन भगवान ने धनीराम की सुन ली और मंगल पिता बन गया। धनीराम ने दादा बनने की खुशी में एक भव्‍य भोज का आयोजन किया जिसमें सभी नगर वालों को न्‍योता भेजा गया। उसमें एक न्‍योता रामसुख को भी भेजा गया। रामसुख नगर का व्‍यापारी था, लेकिन कार्य की व्‍यस्‍तता इतनी ज्‍यादा थी कि वह अपने कपड़ो तक का ध्‍यान नहीं रख पाता था।

कोई अनजान व्‍यक्ति अगर रामसुख को एक नजर देख ले, तो उसे लगता कि रामसुख व्‍यापारी हो ही नहीं सकता। कोई भी एक नजर में देख कर रामसुख को नौकर ही समझ लेता था।

रामसुख को जब यह खबर मिली कि धनीराम ने दादा बनने कि खुशी में भव्‍य भोज का आयोजन किया है तो वह वैसी ही स्थिति में भोज में जा पहुँचा जैसा वह था।

धनीराम ने जब देखा तो रामसुख से पूछा, “रामसुख… यह क्‍या पहन कर आए हो। तुम्‍हे मालुम नहीं है क्‍या? मेरे दादा साहब बनने की खुशी में भोज का आयोजन किया गया है, और तुम तो भिखारी के वेश में ही यहाँ आ गए। यहाँ आए लोग जब तुम्‍हे इस तरह से देखेंगे तो यही कहेंगे कि मैंने भिखारियों को भी न्‍योता भेजा है। उनके मान-सम्‍मान का क्‍या होगा?

रामसुख ने कहा, “नहीं… नहीं धनीराम, तुम दादा बने हो, इस खुशी में ध्‍यान ही नहीं रहा कि मैं कहाँ जा रहा हूँ। मैं तो तुम्‍हे बधाई देने आया था, इसलिए कपड़ों का ध्‍यान ही नहीं रहा लेकिन कपड़ो से क्‍या फर्क पड़ता है?

धनीराम ने रामसुख से कहा, “फर्क पड़ता है, क्‍योंकि यहाँ तुम अकेले ही नहीं आए हो और भी लोग है जो मुझे दादा बनने कि बधाई देने आए है।

रामसुख दु:खी मन से भोज से चला गया और अपने घर आकर उसने अपनी जरीदार कोट पहनी उस पर रेशमी दुप्‍पटा डाला और ऊँची पगड़ी पहन कर फिर से भोज में गया जहाँ भव्‍य भोज चल रहा था। वहाँ जाकर भोजन करने लगा। सबसे पहले रामसुख ने अपने दुप्‍पटे को खीर में भिगाया और बाद में अपनी जेब में मालपुए भरने लगा। कुछ देर बाद ही खीर का कटोरा लेकर उसने अपने ऊपर उड़ेल लिया।

यह देख कर धनीराम आया और रामसुख से पूछा, “रामसुख… यह क्‍या कर रहे हो तुम? पागलों की तरह हरकत करते हुए अपने कपड़े क्‍यों गंदे कर रहे हो?

रामसुख ने धनीराम से कहा, “सेठजी… आपने मुझे थोडे ही न्‍योता दिया था। आपने तो इन कीमती कपड़ों को न्‍योता दिया था तो मैं इन्‍ही को भोजन करा रहा हूँ।

जब आप किसी को न्‍यौता देते हैं, तो बहुत कम लोग ऐसे होते हैं जो वास्‍तव में आपकी खुशी से खुश होकर आपके न्‍योते को स्‍वीकार करते हैं अन्‍यथा ज्‍यादातर लोग तो केवल औपचारिकता निभाते हैं, ताकि आपकी वजह से उनका कोई हित प्रभावित न हो जाए।

इसलिए जो लोग आपकी परवाह करते हैं, आपकी खुशी से खुश और आपके दु:ख से दु:खी हो जाते हैं, ऐसे लोगों को पहचानना और उन्‍हें उचित मान देना आपकी ही जिम्‍मेदारी है, अन्‍यथा आपके पास जो दो-चार ऐसे लोग हैं, वे आपसे हमेंशा के लिए दूर हो जाऐंगे।

इस कहानी से क्या सीख मिलती है?

यह कहानी हमें सिखाती है कि हमें हमेशा दूसरों के प्रति दयालु और सम्मानजनक व्यवहार करना चाहिए, चाहे उनकी सामाजिक स्थिति कुछ भी हो। हमें सच्चे दोस्तों की पहचान करनी चाहिए और उनकी कद्र करनी चाहिए।

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#10 इस संसार में कुछ भी अनुपयोगी नहीं है।

Moral Stories In Hindi – सुरामल नाम का एक राजा था। एक दिन उसने अपने सेनापति को आदेश दिया कि वह इस राज्य में इस बात की खोज करे कि कौन-कौन से जीव-जंतु काम के हैं और कौन से काम के नहीं है।

सेनापति को राजा के इस आदेश पर बड़ा आश्‍चर्य हुआ, लेकिन राजा का आदेश था, सो मानना तो था ही।

सेनापति ने कुछ दिन खोज करने के बाद राजा को आकर कहा, “महाराज… इस देश में केवल ‘मक्खी और मकड़ी’ दो ही ऐसे जीव हैं, जो बिल्‍कुल काम के नहीं है।

राजा ने कुछ सोंच कर आदेश दिया कि, “इन मकड़ी और मक्खियों को मार दिया जाए क्‍योंकि इनसे राज्‍य को कोई फायदा नही है।

सुरामल के सैनिकों ने राज्य की सारी मकड़ी और मक्खियों को मारना शुरू कर दिया। उसी दौरान दूसरे राज्‍य के राजा ने सुरामल के राज्य पर आक्रमण कर दिया और इस युद्ध में सुरामल की हार हो गई। सुरामल के महल पर शत्रु सैना का अधिकार हो गया और सुरामल किसी तरह से अपनी जान बचा कर अपने राज्‍य से भाग निकला लेकिन शत्रु सैनिक अभी भी सुरामल का पीछा कर रहे थे। भागते-भागते सुरामल शत्रु सैनिकों से काफी आगे निकल गया। वह अत्‍यधिक थक गया था, इसलिए एक पेड़ के नीचे बैठ कर कुछ आराम करने लगा।

अत्‍यधिक थका हुआ होने की वजह से बैठते ही सुरामल को गहरी नींद आ गई। तभी एक मक्खी ने सुरामल की नाक पर डंक मारा जिससे सुरामल राजा की नींद खुल गई और अचानक उसे ख्याल आया कि, “खुले में ऐसे सोना सही नहीं होगा। मुझे कोई सुरक्षित जगह खोजनी होगी, जहाँ शत्रु सैनिक पहुँच न पाए और मैं छिप कर वहां रह सकुं।” ऐसा सोंचते हुए सुरामल एक गुफा में जा छिपे।

सुरामल राजा जिस गुफा में छिपे, वहां मकड़ियों ने गुफा के द्वार पर घना जाला बना दिया। शत्रु राजा के सैनिक आए और सुरामल को इधर-उधर खोजते हुए गुफा के पास तक पहुंचे लेकिन गुफा के द्वार पर घना जाला देखकर सैनिक एक-दूसरे से बात करने लगे कि, “हो सकता है, सुरामल यहाँ आया ही न हो क्‍योंकि अगर वह यहाँ आया होता तो इस गुफा में छुपता और अगर इस गुफा मैं छिपता तो यह जाला नष्ट हो जाता।” यही सोंच कर शत्रु सैनिक वहाँ से चले गए और सुरामल की जान बच गई।

राजा को समझ में आ गया था कि दुनिया में कोई भी प्राणी या वस्तु बेकार में नहीं है। हर चीज की एक कीमत है और प्रत्‍येक का अपना अलग उपयोग है। सुरामल को अपने किए हुए पर बड़ा पछतावा हो रहा था क्‍योंकि मक्‍खी व मकड़ी ही वे जीव थे, जिन्‍हें सुरामल ने केवल इसलिए मारने का आदेश दे दिया था क्‍योंकि उन्‍हें लगता था कि ये जीव उनके राज्‍य के लिए किसी काम के नहीं हैं, जबकि उन्‍हीं की वजह से राजा की जान बच सकी थी।

इस कहानी से क्या सीख मिलती है?

यह कहानी हमें सिखाती है कि हमें हर जीव-जंतु का सम्मान करना चाहिए और प्रकृति के साथ तालमेल बनाकर रहना चाहिए। हमें कभी भी अहंकारी नहीं बनना चाहिए और अपनी गलतियों से सीखना चाहिए।

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अगर आप अपनी जिंदगी में बदलाव चाहते है और दुनियां को बेहतर बनाने के उद्देश्य से अपने चरित्र का निर्माण करना चाहते है तो एक छोटी से कहानी भी आपके बदलाव लाने के लिए काफी है। इसके विपरीत अगर आप अपनी जिंदगी को ऐसे ही जीना चाहते है जैसे जी रहे है तो आपको कोई किताब, मोटिवेशनल स्पीकर या कहानी आपको कुछ नहीं सिखा सकती है।